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________________ ५८० अनेकान्त [प्रथम श्रावण, वीर-निर्वाण सं० २४६५ बनाया कि जिससे ब्रह्मा भी चकित होजाता है।' लेखों- गमपारंगता, द्वितीयलक्ष्मी, अभिनवरुक्मिणी, पतिहितमें इनकी विजयोका प्रचुर वर्णन उपलब्ध होता है। सत्यभामा, विवेकै कबृहस्पति, प्रत्युत्पन्नवाचस्पति, व्रतयह जितने प्रतापी थे उतने ही धार्मिक एवं कलाप्रिय गुराशीलचारित्रान्तःकरणी, मुनिजनविनेयजनविनीत, भी थे। इसके लिये इनके द्वारा निर्मापित हलेबीडु एवं पतिव्रताप्रमावप्रसिद्धसीता, सकलवन्दिजनचिन्तामणि, बेलरके विष्णमन्दिर ही ज्वलन्त शान्त हैं। कला- .सम्यक्त्वचुडामणि, पुण्योपार्जनकरणकारण, उदुसशास्त्रियोंकी दृष्टि से ये दोनों मन्दिर भारतीय प्राचीन सवतिगन्धवारण, चतुस्समयसमुद्धरण, मनोजराजविजयकलाका जीता-जागता उदाहरण हैं। भारतीय शिल्प- पताका, जिनधर्मकथाकथनप्रमोद, जैनधर्म-निर्मला, कलाके विशेषज्ञ फर्गुसन-जैसे पाचात्य विद्वानने भी मुक्त निजकुलाम्युदयदीपिका, 'गीत-वाम-मृत्वसूत्रधार, जिनकण्ठसे इन मन्दिरोंकी प्रशंसा की है। अब मैं पाठकोंका समयसमुदितप्राकार, लोककविख्याता, भव्य ननवत्सला, ध्यान प्रस्तुत विषय पर आकृष्ट करता हूँ। जिनगन्धोदकपवित्रीकृतोत्तमाङ्ग तथा आहाराभयभैष शान्तलादेवीने शक सं० १०४५ सन् ११२३ में ज्यशास्त्रदानविनोद आदि विशेषणों एवं विरुदावलियोंभवणबेल्गोलमें 'सवतिगन्धवारण बम्ति' नामक एक द्वारा सादर अंकित की गई है । इन विशेषणों तथा विशाल जिनमन्दिर बनवाया है। इसमें लगे हुए शिला- विरुदावलियोंसे देवी शान्तलाकी महत्ता और व्यक्तित्वका लेखमें मेषचन्द्र के शिष्य प्रमाचन्द्रकी स्तुति, होयसल पता आसानीसे लगजाता है। . वंशकी उत्पत्ति और विष्णुवईन तककी वंशावली, शान्तला अन्यान्य कलाओंके साथ साथ गीत, विष्णुवर्धनकी उपाधियाँ एवं शान्तलादेवीकी प्रशंसा वाद्य एवं नृत्यमें भी पूर्ण पण्डिता थीं। इससे पता लगता तथा उनके वंशका परिचय पाया जाता है । शान्त- है कि उस जमानेमें साधारण स्त्रियोंकी बात तो दूर रही लादेवीकी उपाधियोंमें 'उबृत्तसवतिगन्धवारण' अर्थात् बड़ी-बड़ी पट्ट-महिपियाँ तक संगीतको सादर अपनाती थीं 'उच्छृखल सौतोंके लिये गन्धहस्ती' यह उपाधि भी और समाज भी उन्हें सम्मानकी दृष्टि से देखता था ! सम्मिलित है। शान्तलादेवीकी इसी उपाधि परसे बस्ति साथ ही, उनकी 'उदृत्तसवतिगन्धवारण' इस उपाधिसे अर्थात् मन्दिरका भी उक्त नाम पड़ गया है। इस सिद्ध होता है कि यह सभी रानियों पर पूर्ण प्राधिपत्य मन्दिरकी लम्बाई-चौड़ाई ६६४ ३५ फुट है। इसमें जमाये हुए थीं। पाँच फुटकी शान्तिनाथ स्वामीकी मूर्ति विराजमान है। श्रवणबेल्गोलके लेख नं० ६२ (१३१) में भी इस दोनों ओर दो चमरवाहक खड़े हैं । मुलनासिमें (१) यक्ष- शान्तलादेवी-निर्मापित मन्दिरका उझेख है। उक लेख यक्षी, किम्पुरुष और महामानसिकी मूर्तियाँ हैं । गर्भगृह- गन्धवारणवस्तिमें इनके बारा स्थापित शान्तिनाथजीकी. के ऊपर एक अच्छी गुम्बज बनी हुई है। देवी शान्तला- मूर्तिके पाद-पीठ पर यो अंकित है- . .: के शीलसौन्दर्यादि गुणोंकी उल्लिखित लेखमें भूरि-भूरि "प्रभाचन्द्रमुनीन्द्रस्य पदपंवाक्ट्पदा । प्रशंसा की गई है। यह दान-चिन्तामणि, सकलकला- सान्तमा शान्तिनेन्द्रप्रतिविम्बमकारवत् । - उत्तौ बगुवं व्यस्तरखता सहिम युगे ०. ०११ (३२) -- कायि योनितम्बमल घसेतिमात्रामम् ।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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