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वर्ष २, किरण १०]
सुभाषित
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विनोद रो रहे थे, मातृत्व जो अब तक सोचा पत्रा बा, विमलाके हत्यमें जाग उठा । उसने रोते हुए कहा"मेरे खाल ! सान!" और पागलकी तरह उसे अपने कलेजेसेकस लिया जैसे उसे अपने हृदय में कैद कर लेगी. जाने न देगी। दिनेशने भाँखें खोबी, कहा--तुम मेरी माँ हो! तुम पागई!
विमला-मेरे दिनेश ! मेरे बच्चे ! मैं सेरी माँ है, मैं पागई।
दिनेश बदबहाया-मेरी बनी माँ ! तुम भागई।
माँ बेटे दोनों मिल गये थे। दिनेशको अब दबाकी जमरत न थी, जिस वस्तुकी उसे वर्षोंसे चाह थी, भब मिल चुकी थी। विनोदकी माँसोंसे अब भी पासू झर रहे थे, पर वे भानन्दके भाँसू थे।
फिरसे बिनोदकी महुम्वतकी दुनिया बस गई। कुछ समयके लिये वे मजग हो गये थे, पर फिर एक लहर भाई, जिसने उन्हें मिला दिया।
नि--
[श्री भगवन्' जैग] दौर्बल्य निशा अब दूर हटो,
जागा है मनमें पल-विहान । होने अब लगा दृष्टिगत है,
जगमग-भविष्यका भासमान ।। री! उठ प्रतापकी अमर-भान,
भरदे प्राणोंमें विमल-ज्योतिझक सके नहीं मस्तक कदापि,
मैं भूल न जाऊँ स्वाभिमान ।।
भाओ, निशंक होकर खेलो,
अभिमन्यु-धीरके रण-कौराल ! बतला मैं स. विश्व-भरको,
किसको कहते हैं पौरुष-बल ? है मातृभूमि पर भात्म-त्याग-,
कर देना कितना सुलभ-कठिन ? यह शुभादर्श, जो हो न सके,
दुनियाँकी आँखोंसे भोझल ॥
विमला वीणा बजा रही थी। दिनेशने कहा"भाभी तुम्हारी भावाङ्गपड़ी कोमल है, मैंने तो भैय्यासे पहले ही कहा था कि भाभीकी बाबी बदी सुरीली होगी।" उन बातोंको पार करके विनोद तो ईस पड़े, और विमलाने दिनेशको चूम लिया।
सुभाषित
घुल मिल जामो तुम प्राणों में,
ऐ, धर्म-राजके अटल सत्य! कर म सफल नर-कायाको,
पालन कर आवश्यक सुकृत्य ।। विश्वोपकारमें लगे हृदय,
हो लघुताका मनसे विनारास्थापित जो हो सके भन्य, . निष्कपट प्रेमका आधिपत्य !!
'बहुदिही हैबो इन्धियों पर-गवर भर. कसे रोकती है उन्हें पुराईसे दूर रखती है और नेवीकी मोर प्रेरित करती है।'
· पहिंसा सब धर्मों में हिंसाके पीछे हर सराव पाप लगा रहता है। -तिल्यवानुगर