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दिव्यध्वनि
[लेखक-बाबू नानकचन्दजी जैन एडवोकेट]
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[बाबू नानकचन्दजी जैन एवोकेट रोहतक एक अच्छे विचारशील विद्वान् है। भापका बहुतसा समय जैनग्रन्थों के अध्ययन और मननमें म्यतीत होता है। जब कमी मापसे मिलना होता है तो भाप अनेक सूक्ष्म सूचम तर्क किया करते हैं, जिनसे मापकी विचारशीलताका ख़ासा पता चल जाता है। पाप चुपचाप काम करने वालोंमेंसे हैं और बड़ी ही सजन प्रकृतिके प्रेमी जीव हैं। परन्तु माप खेल लिखने में सदा ही संकोच किया करते हैं। हाल में बीर-शासमजयन्ती-उत्सव मेरे निमंत्रणको पाकर मापने जो पत्र भेजा है उसमें वीरकी दिव्यध्वनि पर अपने कुछ विचार प्रकट किये हैं, यह बड़ी खुशीकी बात है,और इसके लिये मैं भापका भाभारी हूँ। भापका उक्त पत्र शासन-जयन्तीके जक्सेमें पढ़ा गया । उसमें दिव्यम्वनि-विषयक जो विचार है वे पाठकोंके जानने योग्य हैं। अतः उन्हें ज्योंका स्यों नीचे प्रकट किया जाता है। भाशा है विद्वजन उनपर विचारकर विशेष प्रकाश बनेकी कृपा करेंगे।
--सम्पादक
झे अत्यन्त खेद है कि मैं सावन बदि १ के और जिस निमित्त कारणसे इसका विस्तारहोजाता
पवित्र दिन आपकी सेवामें हाजिर होकर और है वही ज्ञानके पैदा करनेका कारण कहा जा सकता मापके उत्साहमें शरीक होकर पुण्यका लाभ न कर है। जिसतरहसे अक्षरी वाणी ज्ञान पैदा करने में सकूँगा ! इसमें कोई शुबाह नहीं है कि यह दिन कारण है उसी तरह निरक्षरी वाणी भी ज्ञान पैदा निहायत मुबारिक है और हमेशा याद रखनेके करनेका कारण है। दो इन्द्रियसे लेकर पंचेन्द्रिय लायक । इस दिन वीरकी दिव्यध्वनिका अवतरण पर्यन्त सभी जीव वाणी बोलते हैं, और सिवाय हुमा, जिस पर सारे जैनशासनका आधार है। इन्सानके सबकी वाणी निरक्षरी ही होती है और कारा कि इस ध्वनिको गूंज भव भी बाकी होती! इस ही वाणीसे उनमें ज्ञान पैदा होता रहता है। खैर , जो कुछ है उसको ही स्मरण रखना हमारा इन्सानको भी जबतक बोलना नहीं सिखाया जाता
है उसकी वाणी निरक्षरीहीरहती है। इससे जाहिर दिव्यध्वनिके बारेमें मालिक प्रशस्खासकी है कि ज्ञान प्राप्तिका कारण सिर्फ अक्षरी वाणी ही मुस्तलिफ धारणाएँ हैं। बाजका ऐतकाद है कि नहीं है, बल्कि निरक्षरी वाणीसे भी ज्ञान पैदा हो दिव्यध्वनि निरक्षरी न होकर अक्षरी ही होती सकता है। . . . . . . .:: थी। उनका कहना है कि निरक्षरी वाणीसे मानका अगर दिव्यध्वनि भी अक्षरी वाणी होती तो पैदा होना नामुमकिन है । मगर यह राय दुरुस्त सब इन्सानों और जानवरों को एक ही बढ़ एकही मालूम नहीं होती। शान तो भात्माका गुण है, वाणीसे शानकी प्राप्ति नामुमकिन हो जातीनिहरी