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________________ वर्ष २, किरण १०] ... भाईका प्रेम विनोद पास साये। सपने कहा-"म साना मीठी होती, मैग्या पाहवरा बीजियेगा! ........... खानो, तुम्हारे भैव्या जल्द ही अच्छे हो जाएंगे, फिक विनोदने गंभीर होनहा-दिनेश स्यानोगे न करो।" दिनेशमे कहा-“डाक्टर साहब पहिले मेरे भाभीको लाकर, सम्भव है उसके मानेपर सुने सुखम भैग्याको अच्छे होने की दवा देदीजिये तब मैं खाना मिले । खाऊँगा।" और न जाने कितने आँसू बहाये । इन दिनेशने सोचते हुए कहा-प्रचा! भाप मेरे शब्दों में पता नहीं कितनी बड़ी विनती थी। इनसे सुखके लिये भाभीको नहीं खाते, मैं जानता हूँ, पर मैं विनोदको कितनी राहत मिली, कितना मानन्द मिला, बताता हूँ अब मेरा सुख इसी कि मी घरमें वही जानें। यह एक बड़ी समस्या थी। सिनेमाकी बातोंने भाभी कैसी वस्तु होती है, अभी तक दिनेशको विनोदको उखमनमें गल दिया था । सदोंने वीण यह पता न था । सब उसे समझाते कि भैव्यासे कहो रखदी और सोचने लगे। दिनेशने मौका पापा और कि ब्याह कराखें । सब का पूर्ण विश्वास था कि यदि उन्हें गुदगुदा दिया । विनोद खिल खिलायरस पड़े। दिनेश ज़ोर दे तो विनोद अवश्य शादी करा लेंगे क्यों- दिनेशने कहा--भैल्या पापा कीजिये भाप मेरे कि उसकी बातको टालना उनकी शक्ति के बाहर था। लिये माभीको जरूर खाएंगे। कीजिये बादा! . उसका छोटासा दिल पूछता-"क्या भाभी भी भैय्या दिनेशकी बातों में कुछ ऐसा असर था कि विनोद. की तरह मुझे प्यार करेंगी, अपने पास बुलाएंगी, जब को उसका कहना मानना पड़ा। मैं मागंगा मुझे पैसा देगी।" सब उसे हाँ में जवाब *.. . देते और वह निश्चय कर लेता किया जस जल विनोदका विवाह हुमा । विममा पाई। दिनेखने भैय्यासे कहेगा। भाभीका पाँचव पामते हुए कहा-पों मामी सा एक दिन विनोद बैठे वीणा बजा रहे थे, पीछेसे तुम भी मुझे मैयाकी तरह प्यार करोगी। बहुत दिनोंसे दिनेश पाया और उसने बाल मुंद खीं! मैं तुम्हारी राह देख रहा था।" बिमखाने कुछ बचाव विनोदने पछा-क्यों दिनेश तुमको मेरा नाना नदिया, दिनेश विषको चोटसी बगी। मामीको प्रका लगता - .:: मौनताका कारण यह समझ म सा! उसने सोचा दिनेशने कहा-बहुत अच्छा-भैय्या! . सापद मामीशमा रही है। कोई बात नहीं दिनों'विनीदने पछा-तुम मेरी तरफ ध्यागसे क्या देख में भाप मोबने बगेगी। पर बात यह थी। रहे हो? दिनेश-"यही" .. . वैसे तो बिमाको प्रतिबदी समुह तथा ?" विनोद-"वही किया?" .... मृदुमानी थी, पर वह स्वयं न समझ पाती किर दिनेसने मुसकराते रहा-वही किपदि भाभी दिनेशसे क्यों चिलीसी रहती। वो उसकी होती तो कितना मजा माता, उनकी भाषा कितनी उसके सवालका प्रेमपूर्वक बनाव नहीं दिया? सोती
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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