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________________ स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द परिशिष्ट [सम्पादकीय] मानेकान्तके प्रथम वर्षकी द्वितीय किरणमें १६ दिस- किया गया था उनमें एक प्रमाण 'सम्बक्त्वप्रकाश -म्बर सन् १९२६ को मैंने 'स्वामी पात्रकेसरी और ग्रंथका भी निम्न प्रकार था:विद्यानन्द' नामका एक लेख लिखा था, जिसमें पात्र- "सम्यक्त्वप्रकाश नामक ग्रंथमें एक जगह लिखा केसरी और विद्यानन्दकी एकता-विषयक उस भ्रमको है किदूर करनेका प्रयत्न किया गया था जो विद्वानोंमें उस तथा शोकवार्तिके विद्यामन्तिमपरनामपानसारसमय फैला हुआ था और उसके द्वारा यह स्पष्ट किया स्वामिना यदुक्तं सब खिल्पते-'तवानदान सम्बगया था कि स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द दो भिन्न मार्शनं । न तु सम्बग्दर्शनरामनिर्वचनसामनादेव सश्राचार्य हुए हैं-दोनोंका व्यक्तित्व भिन्न है, ग्रंथसमूह म्यग्दर्शनस्वरूपनिर्णयावशेषतविप्रतिपत्तिनिवृत्तः सिरभिन्न है और समय भी भिन्न है। पात्रकेसरी विक्रमकी त्वात्तवर्षे तापवचनं न युक्तिमदेवेति विदारका ७वीं शताब्दीके विद्वान् प्राचार्य अकलंकदेवसे भी पहले तामपाकरोति ।' हुए है-अकलंकके ग्रंथोंमें उनके बास्यादिका उल्लेख इसमें लोक बार्तिकके कर्ता विद्यानन्दिको ही पात्रहै-और उनके तथा विद्यानन्दके मध्यमें कई शतान्दियों- केसरी बतलाया है।" का अन्तर है । हर्षका विषय है कि मेरा वह लेख विद्वा. यह प्रमाण सबसे पहले गक्टर के० बी० पाठकने नोको पसन्द आया और उस वक्तसे बराबर विद्वानोंका अपने ‘भर्तृहरि और कुमारिल' नामके उस लेखमें उपउक्त भ्रम दूर होता चला जा रहा है। अनेक विद्वान स्थित किया था जो सन् १८९१ में रायल एशियाटिक मेरे उस लेखको प्रमाणमें पेश करते हुए भी देखे जाते सोसाइटी बम्बई ब्रांच के जर्नल (J.B.B. R. A. S. for I892 PP. 222,223) में प्रकाशित हुआ मेरे उस लेख में दोनोंकी एकता-विषयक जिन पाँच था। इसके साथमें दो प्रमाण और भी उपस्थित किये प्रमाणोंकी जाँच की गई थी और जिन्हें निःसार व्यक्त गये थे-एक आदिपुराणकी टिप्पणीवाला और ....... 'दूसरा शानसूर्योदय नाटकमें 'शती' नामक बीहाबमें प्रकाशित 'न्यायकुमुदचन्द्र की प्रस्तावना- पात्रसे पुरुषके प्रति कहलाये हुए वाम्यवाला, में पं० लाशचन्द्रजी शाली भी बिखते है-"इस जो मेरे उक्त लेखमें क्रमश; नं. २, ४ पर दर्ज है। बतफामीको दूर करने के लिये, भनेकान्त वर्ष पृट ग. शतीश्चन्द्र विद्याभूषणने, अपनी हसिक्न १. पर मुद्रित स्वामी पात्रकेसरी और विवानन्द' लाजिककी हिस्सरीमें, के. बी. पाठकके दूसरे दो सीक निवन्ध देखना चाहिये।" प्रमाणोंकी अवगणना करते हुए और उन कोई
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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