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________________ PHHUHERI MillRATE"/ १ जीवन-ज्योतिकी लहर ज्योतिकी लहरने विशाल उग्ररूप धारण कर लिया है और अब वे सब-कुछ न्योछावर करके विजय प्राप्त हैद्राबाद आर्य सत्याग्रह के जो समाचार आए दिन करनेके लिये उतारू हो गये हैं। यहाँ तक कि एक पत्रोंमें देखनेको मिलते हैं उनसे मालूम होता है ग़रीब भाई भी कुछ न देसकनेके कारण यह प्रतिज्ञा कि हमारे आर्यसमाजी भाइयोंमें खुब जीवन है। जरासी करता है कि मैं महीने में चार दिन भोजन नहीं करूँगा ठेस अथवा थोड़ेसे घर्षणको पाकर उनकी जीवन ज्योति और उससे जो बचत होगी उसे उस वक्त तक बराबर जगमगा उठीहै और उसकी अप्रतिहत लहर सारे भारत- सत्याग्रहकी मददमें देता रहूँगा जब तक कि उसे में व्याप्त हो गई है ! ग़रीबसे ग़रीब तथा अमीरसे सफलताकी प्राप्ति नहीं होगी । अपने आर्य भाइयोंके अमीर भाईके हृदयमें सत्याग्रहको सफल बनानेकी इस उत्साह, साहस, वीरत्व और बलिदानको देखकर उमंग है, हर कोई तन-मन धनसे सहायता पहुँचा रहा छाती गर्वसे फल उठती है और उनकी इस जीवनहै, जत्थे पर जत्थे जारहे हैं और जरूरतसे अधिक माई ज्योतिकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जाता। कुछ सत्याग्रह के लिये तय्यार होगये हैं--यहाँ तक कि प्रधान समय पहले सिक्ख भाइयोंने जो श्रादर्श उपस्थित किया संचालक समितिको ऐसे आर्डर तक निकालने पड़ रहे था उसीकी प्रतिध्वनि आज आर्य भाई कर रहे हैं, यह है कि इतनेसे अधिक भाई एक साथ सत्याग्रहके लिये कुछ कम प्रसन्नताका विषय नहीं है । निःसन्देह दोनों रवाना न होवें और न सत्याग्रहियोंकी स्पेशल ट्रेनें ही ही समाजे देशके लिये गौरव रूप है। आर्यभाइयोंके छोड़ी जावें, थोड़े-थोड़े भाइयोंके जत्थे क्रमशः रवाना साथ, इस युद्धमें, मेरी हार्दिक सहानुभूति है और यह होने चाहिये। यह सब देखकर हैद्राबादकी निज़ाम निरन्तर भावना है कि उनकी न्यायोचित माँगें शीघ्र सरकार भी हैरान व परेशान है, उसकी सब जेलें सत्या- स्वीकार की जाएँ और उन्हें सत्याग्रहमें पूर्ण सफलता ग्रहियोंसे भर गई है--जिनके पर्याप्त भोजनके लिये प्राप्ति होवे । उनका यह त्याग और बलिदान खाली भी उसके पास प्रबन्ध नहीं है और इसलिये वह अपनी नहीं जा सकता । सत्याग्रहके संचालकोंको बराबर सब सुध बुध भुलाकर, सभ्यता-शिष्टताको भी बालाएताक अहिंसा पर दृढ़ रहना चाहिये, किसी भी प्रकारकी रखकर श्रमानुषिक कृत्यों तक पर उतर पडी है, जो कि उत्तेजनाके वश उससे विचलित नहीं होना चाहिये, वह उसकी नैतिक हारके स्पष्ट चिन्ह है। परन्तु इस दमनसे उन्हें अवश्य ही विजय दिलाकर छोड़ेगी। आर्य भाइयोंका उत्साह और भी अधिक बढ़ गया है, निःसन्देह वह दिन धन्य होगा जिस दिन जैनसमाजउनका स्वाभिमान उत्तेजित हो उठा है--उनकी जीवन में भी ऐसी जीवन-ज्योतिका उदय होगा और वह त्याग
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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