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वर्ष २, किरण ]
हरी साग-सब्जीका त्याग
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होता है। यथा
लगे थे-अर्थात जब कि भट्टारकयुग जारी हो मचं मांसं चौवं पञ्चोदुम्बरफलानि चलेन । गया था-जब सैद्धान्तिक चक्रवर्तीकी पदवी हिंसाम्पुपरतिकामैर्मोसन्यानि प्रथममेव ॥१॥ धारण करने वाले वसुनन्दी अपने भावकाचारमें मधु मचं नवनीतं पिशितं च महाविकृतपस्ताः । लिखते हैं कि 'जो कोई शुख सम्यग्दृष्टि पाँच सन. बलम्पन्ते न प्रतिना तपूर्णाजन्तवरतत्र ७१॥ म्बर फल और सात व्यसनोंका त्याग करता है योनिरुदम्बरयुग्मं प्लसम्यग्रोधपिप्पलफलानि । वह दार्शनिक भावक है। गूलर, बड़, पीपल,
सजीवानां तस्मात्तेचा तनावे हिंसा ॥७२॥ . पिलखन और पाकर फल, अचार और फूल, यानि तु पुनर्भवेयुः कालोच्छित्रसाणि शुष्कानि । इनमें निरंतर त्रस जीवोंकी उत्पत्ति होती है, यह भजतस्तान्यपि हिंसा विशिरागादिरूपा स्यात् ॥७३॥ त्यागने योग्य हैं । जमा, शराब, मांस, वेश्या, अष्टावनिष्टदुस्तरदुरितायतनान्यमूनि परिवर्व। शिकार, चोरी और परस्त्री ये सात म्यसन जिनधर्मदेशनाया भवन्ति पात्राणि शुदधियः ॥७॥ दुर्गतिमें ले जाने वाले हैं
(७) ग्यारहवीं शताब्दिके आचार्य श्री अंमित- पंचुंवरसहियाई सत्त वि विसणाईजो विवजेइ । गति अपने श्रावकाचारके अध्याय ५३में लिखते हैं सम्मत्तविसुरमई सोसणसावनो भविभो ॥७॥ . कि 'मद्य,मांस,मधु,रात्रि भोजन और पाँच उदम्बर उंबरवरपीपखपिवपायरसंधाणतरूपसूबाई। ... फल, इनका त्याग व्रतधारण करनेकी इच्छा करने णिचं तससंसिद्धाइं साई परिवलियम्बाई ॥५.. वाला करता है, मन-वचन-कायसे त्याग करनेसे जूचं मज मांसं वेस्सा पारबि-चोर परवार। . . व्रतकी वृद्धि होती है। नौनीधीमें अनेक प्रकारके दुमाइगमणस्सेदाणि हेठभूवाणि पावाणि ॥२६॥ जीवोंका घात होता है, जो उसको खाता है उसके इस प्रकार पुराने शास्त्रोंको बहुत कुछ हूंढ़ने लेशमात्र भी संयम नहीं हो सकता, धर्मपरायण पर भी पहली प्रतिमाधारी श्रावकके वास्ते कहीं होना तो फिर बनही कैसे सकता है ? सज्जन पुरुष किसी शास्त्र में भी एकेन्द्रिय स्थावरकाय हरी मरण पर्यतके लिये मद्य, मांस, मधु और नौनीधी सब्जीके त्यागका विधान नहीं मिलता है। पुराने का मन वचन कायसे त्याग करते हैं।' यथा.- . समयके महान् आचार्योने तो पहली प्रतिमाके लिये मद्यमांसमधुरात्रिभोजनं वीरवृक्षफलवर्ननं विधा। एकमात्र सम्यक्त्वकी शुद्धिको ही जरूरी बताया है, कुर्वते प्रतजिया सुधास्तत्र पुष्यति निषेविते मतम् ॥ इस ही कारण उनके लिये कोई किसी प्रकारका भी चित्रजीवगणसूदनास्पदं विलोक्य नवनीतमयते। त्याग नहीं लिखा है। परन्तु पीछेके प्राचार्याने तेषु संघमनवोऽपि न विद्यते धर्मसाधनपरायणतः ॥३४ मांस, शराब, शहद, और पांच उदम्बर फलका वैजिनेन्द्रबचनानुसारियो पोस्वम्मवनपातमीरवः । त्याग भी त्रसहिंसाकी दृष्टिसे. उनके वास्ते जली तैरचतुष्पमिदं विनिवितं जीवितावधि विमुच्यते विधा॥३. ठहरा दिया है। फिर और भी कुछ समय बीतने
(८) विक्रमकी बारहवीं शताब्दीमें, जबकि वन- पर प्रसहिंसासे बचनेके लिये नौनी पी और धारी भी दिगम्बर मुनि और भाचार्य माने जाने. फूलोंका त्याग भी जारी हो गया है । अन्तमें