SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 574
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . अनेकान्त [अाषाढ़, वीर निर्वाण सं०२४६५ ... कुछ देर यही दशा रही ! इसके बाद द स्वरमें करूँगा ! अगर इस प्रकारकी जघन्य हत्यासे मुझे बोले-'छोड़ दो, बच्चेके प्राण ! बन्द करो यह हिंसा- स्वर्ग-राज्य भी मिले तो वह मुझे पसन्द नहीं !' का आयोजन !... .. .."उसी समय आकाशसे देव-वाणी होती है. कर्मचारियों के हाथ ज्योंके त्यों रह गए ! रुक गया धन्य ! 'धन्य !!' । मंत्रोचारणका प्रवाह ! और सब देखने लगे चकित-दृष्टिसे महाराजके तेजस्वी-मुख-मण्डलकी ओर ! दूसरे प्रभातवह कहने लगे-'अब मुझे न दुर्ग द्वारसे मतलब नगरमें आनन्द मनाए जा रहे थे ! महाराज निर्विघ्न है, न नगरमें जानेसे ! मैं प्राकारके बाहर-बनमें ही अपने सिंहासन पर आ बिराजे ! न दुर्ग-द्वार गिरा, न सकुटुम्ब, मय लश्करके रहकर नये नगरकी स्थापना अन्य कोई दुर्घटना हुई ! सब हृदयोंमें एक ही भावना कर, शासन व्यवस्थाका संचालन करूँगा ! निरपराध थी, सब जुबानों पर एक ही चर्चा थी "अहिंसाकी प्रजा-पुत्रके रक्तसे अपनी क्षत्रिय-तलवारको कलंकित न अजेयशक्ति या उसकी दृढ़ता का महत्व !!! जीवनके अनुभव सदाचारी पशुओंके उदाहरण ले--अयोध्याप्रसाद गोयलीयं (७) साँपका अलौकिक कार्य-सदाचारी पशु- ऊँटीको चराने जंगल लेंगया तो उनमेंसे एक ऊँट श्रोंके सिल्सिलेमें सरदार बेलासिंह "केहर" ऐडीटर मुझे मार डालने के लिये मेरी ओर लपका। मैं जान "कृपाण बहादुर" अमृतसरने-जो कि १३१ दफामें बचानेकी ग़रज़से भाग निकला । ऊँट भी मेरा १ वर्ष के लिये मोण्टगुमरीजेल में आए थे-बतलाया पीछा कर रहा था। मैं उसकी निगाहसे ओझल होनेके कि हमारे गाँव बिछोह (ज़ि अमृतसर) में एक बिलोची लिए एक झाड़ियोंके झुण्ड में घुसा तो वहाँ छुपे हुए बुड्ढा टेटर गाँव (ज़ि० लाहौर) का आकर रहने लगा कुएमें गिर पड़ा। उस कुएमें पानी नाम मात्रको था । था । उसका पाँव कटा हुआ था । मैंने कौतूहल वश मुझे झाड़ीमें घुसते हुए ऊँटने देख लिया था, अतः वह टाँग कटनेका कारण पूछा तो उसने बतलाया कि "हम भी वहीं चक्कर काटने लगा। कुए में पड़ने पर बमुश्किल ऊँटोंका व्यापार करते थे । हस्बदस्तूर एक रोज़ मैं मेरे होश-हवास ठीक हो पाये थे कि मुझे वहाँ दो * ऊँट बड़ा कीनावर (बैर भावको हृदयमें बनाये रखनेवाला) होता है । मालिक या चरवाहेकी डाट-डपट किसी वक्त अगर इसे अपमान-जनक मालम होती है, तो उस वक्त चुपचाप सहन कर लेता है। मगर भूलता नहीं और अवसरकी तलाशमें रहता है। मौका मिलते ही अपमान-कारकको मारकर अपने अपमान या बैरका बदला लेलेता है।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy