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________________ वर्ष २, किरण ] हरी साग-सब्जीका त्याग ५१६ भयानक साँप दिखाई दिये । मारे घबराहटके मेरी पिग्धी घे भी मैंने इन्हीं उदाहरणोंके साथ नोट कर लिए थे । बन्ध गई। उनमें से छोटे साँपने बाहर निकलकर उस उनमेंसे कुछ इस प्रकार हैं- ... ... ... ... ऊँट को काट खाया । जिससे वह ऊँट धड़ामसे जमीन (८) सहृदयता-"कप्तान स्टेन्सवरीने अमेरिकापर गिर पड़ा । और बड़ा साँप बाहर निकलकर अपने की एक खारी झील में एक बहुत बुर और अन्य फणको काडीकी एक मजबूत टहनीमें लपेट छके हवासिल (पक्षिविशेष ) को देखा था, जिसे उसके हिस्सेको मेरे सर पर हिलाने लगा । पहले तो मैं घबड़ाया साथी भोजन कराया करते थे और इस कारण वह खूब आखिर उसका मतलब समझकर मैं उसकी पूँछ पकड़ हृष्ट पुष्ट था । मि० ग्लिथने देखा था कि कुछ कब्वे कर बाहर निकल आया। बाहर आकर मैंने ऊँटको अपने दो तीन अन्धे साथियोंको भोजन कराते थे। मरे हुए देखा तो गुस्से में उसके एक लात मारी । वह कप्तान स्टैन्सवरीने लिखा है कि एक तेज़ करनेकी ऊँट साँपके जहरसे इतना गल गया था कि मेरे लात धारामें एक हवासिल के बच्चे के बहजाने पर आधे दर्जन मारते ही पाँवका थोड़ा हिस्सा ऊँटके गोश्तमें घुस गया हवासिलोंने उसे बाहर निकालनेका प्रयत्न किया । मैंने शीघ्रतासे पाँव निकाल लिया, किन्तु जहर बराबर डारविनने स्वयं एक ऐसे कुत्तेको देखा था जो एक पाँवमें चढ़ रहा था । मेरे भाईने पाँवकी यह हालत टोकरीमें पड़ी हुई बीमार बिल्लीके समीप जाकर उसके मुँह देखी तो दरान्तीसे मेरी टाँग काट डाली ताकि जहर को दो एकबार चाटे बिना कभी आता जाता न था।" आगे न बढ़ सके । तभीसे मैं एक पाँवसे लँगड़ा हूँ।" (६) आज्ञापालन-“पशुओंमें बड़ोका आदर उक्त चार पाँच उदाहरणों में कितना अंश सत्य- करने और नेताकी श्राज्ञामें चलनेकी प्रवृत्ति भी पाई असत्यहै, मैं नहीं कह सकता । पहला उदाहरण मैंने जाती है । अबीसिनियाके बयून (बन्दरविशेष ) जब प्रत्यक्ष देखा और बाकी सुने है। इन्हें पाठक सत्य ही किसी बाग़को लुटना चाहते हैं तो चुपचाप अपने नेतामानें ऐसा मोह मेरे अन्दर नहीं है । उन्हीं दिनों के पीछे चलते हैं । और यदि कोई बुद्धिहीन नौजवान बा० गोवद्धनदास एम.ए. कृत और हिन्दीग्रन्थरत्नाकर बन्दर असावधानताके कारण जरा भी शोरोगुल करता कार्यालय बम्बई द्वारा प्रकाशित “नीति-विज्ञान" है, तो उसे बूढ़े बन्दर तमाचा लगाकर ठीक कर देते हैं। पुस्तक भी पढ़नेमें आई । उसमें अनेक वैज्ञानिकों द्वारा और इस तरह उसे चप रहने तथा आशा पालनकी अनुभव किए हुए पशुअोंके उदाहरण दिए गए हैं। शिक्षा देते हैं।" . सुभाषित बड़े भाग मानुष तनु पावा । सुर दुर्लभ सद ग्रंथहि गावा। साधन धाम मोच्छ कर द्वारा । पाइ न जेहिं परलोक संवारा ॥ एहि तन कर फल विषय न भाई । स्वर्गउ स्वल्प अन्त दुखदाई । नर तन पाइ विषय मन देहीं । पलटि सुधा ते सठ विष लेहीं॥ 1 ताहि कबहुँ भल कहइ कि कोइ । गुंजा ग्रहइ परस मनि खोई । में आकर चार लच्छ चौरासी। जोनि भ्रमत यह जिव अविनासी ॥ -तुलसी
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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