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________________ ४८६ अनेकान्त [भाषाद, वोर-निर्वाणसं०२४६५ 'योनिप्राभूत' दिगम्बर ग्रंथ है। क्योंकि धरसेनाचार्य उक्त नम्बर पर ग्रन्थका नाम यद्यपि 'योनिप्रामृत' दिगम्बर हुए है और उनका समय भी उक्त समय ही दिया है परन्तु यह अकेला योनिप्रामृत ही नहीं है 'वीयत् ६००' के साथ मिलता-जुलता है । परन्तु जहाँ बल्कि इसके साथ 'जयसुन्दरीयोगमाला-जगत्सुन्दरीतक दिगम्बर शास्त्रभंडारों और उनकी सूचियोंको योगमाला नामका ग्रन्थ भी जुड़ा हुआ है। इन दोनों देखनेका अवसर प्राप्त हुआ है मुझे अभी तक कहीं भी ग्रंथोंको सहज ही में पृथक् नहीं किया जा सकता; क्योंकि इस ग्रन्थका नाम उपलब्ध नहीं हुभा । हाँ, धवल ग्रन्थ- इस ग्रंथप्रतिके बहुतसे पत्रों परके अंक उड़ गये हैंके निम्न उल्लेख परसे इतना जरूर मालूम होता है कि फटकर नष्ट होगये हैं । मात्र सोलह पत्रों पर अंक 'योनिप्राभूत' (जोणीपाहुड) नामका कोई दिगम्बर ग्रंथ अवशिष्ट हैं और वे पत्रांक इस प्रकार हैं-६, १०, ११, जारूर है और उसमें मंत्र-तंत्रोंकी शक्तियोंका भी वर्णन १२, १३, १४, १५, १६, १७, १६, २०, २१, है, जिन्हें 'पुद्गलानुभाग' रूपसे जाननेकी प्रेरणा की २२, २३, २४, २५ । जिन पत्रोंपर बहनहीं रहे उनमेंसे गई है, और इससे अंथके विषय पर भी कितना ही बहुतोंकी बाबत यह मालूम नहीं होता कि वे कौनसे प्रकाश पड़ता है ग्रंथके पत्र हैं । कोई अच्छा श्रेष्ट वैद्यक-पंडित हो तो वह ___ अर्थानुसन्धानके द्वारा इन दोनों ग्रन्थोंको पृथक् कर ... "जोणीपाहुरे भणिदमंततंतसत्तीमो पोग्गलाणु सकता है-यह बतला सकता है कि अंकरहित कौनसा भागो तिघेत्तम्बा।" -आरा प्रति पत्र नं०८६१ पत्र कौनसे ग्रंथसे सम्बन्ध रखता है और प्रत्येक ग्रंथका - अब देखना यह है कि पूनाके दक्कन-कालिजकी कितना कितना विषय इस प्रतिमें उपलब्ध है। दोनों प्रति परसे इस विषयमें क्या कुछ सूचना मिलती है। ग्रंथ प्राकृत भाषामें गाथाबद्ध हैं और दोनोंमें वैद्यक, दकनकालिजका हस्तलिखित शास्त्रभण्डार अर्सा हुआ धातुवाद,ज्योतिष,मंत्रवाद तथा यंत्रवादका विषय भी है। भाण्डारकर ओरियंटल रिसर्च इन्स्टिट्यूट (भायडारकर- धातुवाद और यंत्रवादका कथन करते हुए उनके जो प्राध्य-विद्या-संशोधन-मन्दिर) के सुपुर्द हो चुका है,और प्रतिशावाक्य अंकरहित पत्र पर दिये हुए हैं वे इस इससे यह ग्रंथ अब उक्त इन्स्टिट्यूटमें ही पाया जाता है। प्रकार हैंवहाँ यह A १८८२-८३ सन्में संग्रहीत हुए ग्रंथोंकी मिसालेोजय पाउन्यायं पवक्खामि ।" लिस्ट में 'योनिप्राभृत' नामसे नं० २६६ a पर दर्ज है। "धम्मविलासनिमित्तं जंताहिवारं पवक्खामि ।" कुछ वर्ष हुए प्रसिद्ध श्वेताम्बर विद्वान् पं० बेचरदासजीने इस ग्रन्थप्रतिका वहाँ पर अवलोकन किया था और इस ग्रंथप्रतिका 'योनिप्रामृत' ग्रन्थ धरसेनाचार्यउस परसे परिचयके कुछ नोट्स गुजरातीमें लिये थे। का बनाया हुआ नहीं है, बल्कि 'प्रश्नश्रवण' नामके दिगम्बर ग्रंथ होनेके कारण उन्होंने बादको वे नोट्स मुनिका रचा हुआ है और वह भूतबलि तथा पुष्पदन्त सदुपयोगके लिये सुहृदर पं० नाथूरामजी प्रेमी बम्बईको नामके शिष्योंके लिये लिखा गया है; जैसा कि योनिदे दिये थे। उन परसे इस ग्रन्थप्रतिका जो परिचय प्राभृतके १६वें पत्रके पहली और दूसरी तरफ्रके निम्न मिलता है वह इस प्रकार है वाक्योंसे प्रकट है
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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