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________________ वर्ष २, किरण जीवन के अनुभव ४७६ की कारी लड़कीको स्वाजमें दिखाई दी और उससे कर मोड़ लोग उस युवकको जीन्द स्टेट के शफा कहा कि मुझे कामोत्ादक चीजें न खिलाएँ और खाने में ले गये । तब डाक्टरने बतलाया कि यदि न विजारके पास लेजाएँ, मैं अब ब्रह्मचारिणी ही उस जहरीले गोश्तको कुत्ता न बकोटता तो इलाज रहना चाहती हैं। और यदि मझेभव अधिक तंग होना नामुमकिन था, यहां भाते माते गीदडका किया गया तो मैं कुरमें गिर कर प्राण दे दूंगी। शहर पूरा काम कर गया होता । उधर वह कुत्ता लड़कीने स्वप्नका जिक्र किया तो सब हमने लगे अचेत पड़ हुमा था कि मेरा बड़ा भाई शंकरदत्त और अपना प्रयत्न चालू रक्खा । अन्तमें गायने उधरसे जा रहा था उसने कुत्ते के वृतात सुने कुएमें गिर कर प्राण छोड दिए । तब लोगोंने तो उसे गाड़ीमें रख कर अपने यहाँ ले पाया गायके ब्रह्मचर्यव्रतको समझा। और दवादारू करके उसे अच्छा कर लिया। उन्हीं (५) भ्रातृ-प्रेम-इसी गायके दो जुगलिया दिनों हमारे गाँव राजपुरामें एक भैसा मरखना बछड़े जो अभी तक जीवित हैं। एक हजार रुपयेमें हो गया था, वह चाहे जिस खेतमें घस जाता भी उसके मालिकने नहीं बेचे । उन दोनों बैलोंमें और खेतका नाश कर देता। यदि उसे कोई ललअटूट प्रेम है। एक साथ खाते,पीते, उठते, बैठते हैं : कारता तो आवाज की सीधमें जा कर पहले बलऔर आश्चय तो यह है कि गोबर और पेशा भी कारने वालेको मारता रि खेतमें जाकर चरता। एक साथ करते हैं। यदि दोनोंको अलग अलग उसके इस उपद्रवसे गॉवभरमें आतंकमा छा कर दिया जाए तो न खाना ही खाएंगे और न किसी गया । धार्मिक रूढ़ियोंके कारण गाँव वाले उसे अाय बैलके साथ गाड़ी या हलमें चलेंगे। यदि बन्दूक वगैरहसे जानसे मारना चाहते नहीं थे एकके नीचे जमीन गीली है तो सुखी जमीन वाला और लाठियोंकी मारसे वह बसमें नहीं पाता बैल भी खड़ा ही रहेगा । यदि अलग अलग पानी था। बड़ी परेशानीमें गांव वाले पड़े हुए थे । एक या खाना दिया जाए तो वह सूफेंगे भी नहीं। एक रोज वह हमारे खेतमें घुसा तो भाई साहबने ही वर्तनमें होगा तो दोनो साथ मिल कर खाए जवानीके जोशमें उसे ललकारा तो वह लाल लाल पीएँगे। इन बैलोंका भ्रातृ-प्रेम देख कर लोग आँखें किए हुए सीधा उनकी भोर दौड़ा। सौभाहैरान होते हैं। ग्यसे वह कुत्ता भी वहीं पर था। कुत्तने मैंसेको ... (६) कृतज्ञता-हमारे गाव राजपुरासे एक इतने वेगसे आक्रमण करते देख उसकी पीठ पर कोसके फासले पर रोड़ (खानाबदोश) ठहरे छलांग मारी । और अपने तेज दाँतसे उसकी हुए थे। उस गिरोहमें एक यु.कके पास कुत्ता था। गईनके गोश्तको निकालने लगा। कुत्ते के इस युवक सो रहा था कि अचानक बावले गीदड़ने दावके आगे भैंसा आक्रमण करना तो भल गया आकर उसे काट लिया। कुत्ते ने देखा तो यक- उल्टा उसे जानके लाले पर गये । इस नागहानी की काटी हुई जगहसे वह थोड़ा सा मांस काटकर बलासे पिण्ड कुहानकी गरजसे वह इधर उधर ले गया ताकि पागलपनका असर युवकके रक्तमें भागने लगा और अन्समें लाचार हो कर यह न दौड़ जाए । कुत्तेकी इस दूरदर्शिताको वह पानीके तालाबमें कूद पड़ा। तब कहीं चेने मूर्ख युवक न समझा । उसने सोचा गीदड़से उसे छोड़ा । इस घटनाके बाद वह मैंसा इतना बचाना तो दूर, उलटा मेरे ही गोश्तको काटकर सीधा हो गया कि बकचोंसे भी कुछ न कहता था। ले गया। ऐसे कृतेको मार देना ही अच्छा है । यह खेद है मेरा भाई, बदकता कुत्ता और मैसा अब सोचते हुए क्रोधावेशसे कुत्ते के इतने जोरसे लाठी इस संसार में नहीं हैं। मारी कि वह अचेत हो कर गिर पड़ा। कुत्तेको छोड़ क्रमशः
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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