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________________ जीवन के अनुभव सदाचारी पशुओंके उदाहरण ... ले०--अयोध्याप्रसाद गोयलीय (३) * पतिव्रता चिड़िया–१२ मार्च १९३९ घूमने लगा । उसके भाग्यसे चिड़ियाके दो छोटेकी प्रातःकालका सुहावना समय था, हम सब छोटे पर वहाँ गिर पड़े थे, अन्तमें लाचार होकर सी. क्लासके राजनैतिक कैदी मौण्टगुमरी जेलमें स्मृतिस्वरूप उन परोंको ही उठाकर वह उस बैठे हुए पान बट रहे थे। अनुमानतः ८ बजे होंगे घोंसलेमें लेगया जहाँ कभी वे प्रेमसे दाम्पत्य जीवन कि एक चिड़ियासे एक चिड़ा अकस्मात् लड़ता व्यतीत करते थे। जिस तरह वह चिड़ा तडपता हुआ देखा गया । चिड़ा उससे बलात्कार करना हुआ हमारे पाँवोंमें घूम रहा था, ठीक इसके विप. चाहता था किन्तु चिड़िया जानपर खेलकर अपने रीत दूसरा कामातुर घातक चिड़ा दीवार पर बैठा को बचा रही थी। सफल मनोरथ न होनेके हा भयभीत हासा हमारी ओर देख रहा था । कारण क्रोधावेषमें चिड़ाने चिड़ियाकी गर्दन मँझोर मरी हुई चिडियाके पास आनेकी उसकी हिम्मत डाली, जिससे उसके प्राणपखेरू उड़ गये ! मरने नहीं होती थी। बात है भी ठीक, एक प्रेमी, जिसपर चिड़िया ऊँची दीवारसे जमीन पर आ पड़ी। का हृदय प्रेमसे तर बतर है, अपने शत्रुओंके पास हम सब कौतूहलवश अपना काम छोड़कर उसके भी निःशंक चला जाता है और जिसके हृदयमें चारों ओर खड़े हो गये। एक-दो मिनिटमें ही एक पाप है वह सब जगह भयभीत रहता है। पातिव्रत, और चिड़ा वहाँ आया और हमारे पाँवोंमें पड़ी ब्रह्मचर्य और प्रेमका यह आदर्श आज ९ वर्ष बाद हुई चिड़ियाको बड़ी आतुरता और वेकरारीके भी बाइस्कोपके समान नेत्रोंके आगे घूम रहा है। साथ सुंघने लगा। वह हटाएसे भी नहीं हटता था। (४) ब्रह्मचारणी गाय-हम लोग उक्त घटनासे उसकी वह तड़प कठोर हृदयोंको भी तड़पा देने काफी प्रभावित हुए।रात्रिको सब कार्योंसे निश्चिन्त वाली थी। मालूम होता था कि यह चिड़ा ही उस होकर बैठे तो यही चर्चा चल निकली । बातोंके चिड़ियाका वास्तविक पति था । वह इतना शोकापुल था कि उसे हमारा तनिक भी भय नहीं था । निवासीने-जो कि दफा १३१ में ३ वर्षकी सजा - सिल्सिलेमें पं०रामस्वरूपजी राजपुरा (जीन्द स्टेट) हम इस कौतूहल या आदर्श प्रेमको देख ही रहे थे । | लेकर आए थे-अपने आँखों देखे प्रत्यक्ष अनुकि जेलसुपरिण्टेण्डेण्ट और जेलर साहब भी मा भव सुनाए, जो कि मैंने कौतूहलवश उसी समय वहां तशरीफ ले आए, उन्होंने सुना तो उनके नेत्र नोट कर लिये थे। उन्होंने बतलाया कि हमारे भी सजल हो आए । मरी हुई चिड़ियाकी देखदेख गाँवसे १२ कोस दूरी पर गुराना गाँव है । वहाँ कर चिडा कहीं दम न दे बैठे, इस खयालसे चि. एक मनष्यकी गायने एक साथ दो बछड़े प्रसव डियाको उठाकर उसकी नजरोंसे ओझल कर दिया किये । उसके बाद वह गर्भवती नहीं हुई । उसे गया। तब वह चिड़ा और भी बेचैनीसे इधर-उधर कामोन्मत करनेके लिये कितनी ही दवाइयाँ खिलाई • मेरे लिखे हुए जीवनके दो अनुभव अनेकान्तकी गई किन्तु उसे कामेच्छा नहीं हुई । जब उसे जरूचतुर्थ किरणमें प्रकाशित हो चुके हैं । -लेखक रतसे क्यादे तंग किया गया तो, वह अपने मालिक
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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