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अनेकान्त
[कार्तिक, वीर-निर्वाण सं० २४६५
कोई अन्तर नहीं । सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक आदि ग्रन्थों देशोंमें जाबस हैं । पहले, दूसरे और तीसरे कालमें इस में शक, यवन, शबर, पुलिन्दादिको कर्मभूमिज म्लेच्छ आर्यखण्डम भोगभूमिया रहते थे, जो अतिउत्तम आर्य बतलाया ही है । अस्तु ये शक, यवनादिक कौन थे और तथा उच्चगोत्री थे और कल्पवृक्षोंसे ही अपनी सब अब इनका क्या हुआ ? इसपर एक विस्तृत लेख इच्छित वस्तुएँ प्राप्त कर लेते थे । तीसरे कालके अन्त के लिखे जानेकी ज़रूरत है जिससे यह विषय साफ- में कल्पवृक्ष समाप्त हो गए, तब श्रीऋषभदेव भगवान् साफ रोशनी में आजाय । हो सका तो इसके अनन्तर ने उनको क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्ररूप तीन भेदों में उसके लिखनेकी कोशिश की जावेगी।
वाट कर, खेती, पशु-पालन, व्यापार, सेवा और सिपाही
गीरी आदिक कर्म सिखाए । तत्पश्चात् भरत महाराज यहा सबसे पहले यह जाननेकी ज़रूरत है कि आर्य
ने उन्हीं तीनों में से कुछ मनुष्योंकी एक चौथी खंडी हद कहाँ तक है । भरतक्षेत्रकी चौड़ाई ५२६
ब्राह्मण जाति बनाई । इन चारों ही जातियोंकी सन्ताने. योजन ६ कला है । इसके ठीक मध्यमें ५० योजन चौड़ा
जिनमें छूत अछूत मभी शामिल हैं. आर्य सन्तान होनेसे विजयाध पर्वत है, जिसे घटाकर दो का भाग देनेस
जाति-आर्य हैं। २३८ योजन ३ कलाका परिमाण आता है; यही आर्य
कर्म आयोंका वर्णन करते हुए श्री अकलंकदेवने खण्डकी चौड़ाई बड़े योजनों से है, जिसके ४७६०००
राजधातिकमें लिखा है कि वे तीन प्रकार के हैं-एक से भी अधिक कोस होते हैं, और यह संख्या आजकलकी जानी हुई सारी पृथिवीकी पैमाइशसे बहुतही ज्यादा
सावद्यकार्य दूसरे अल्पसावद्यकार्य, तीसरे असावद्य कर्म कई गुणी अधिक है । भावार्थ इसका यह है कि आज
आर्य । पिछले दो भदोंका अभिप्राय देशवतियों तथा कल की जानी हुई सारी पृथिवी तो आर्यखण्ड ज़रूर ही
महावतियोंसे है ।रहे सावद्यकार्य, वे ऐसे क माँसे आजी
बका करने वाले होते हैं जिनमें प्रायः पाप हुआ करता है और आजकलकी जानी हुई इस सारी पृथिवी पर रहने
है । उनके छह भेद है.--(१) जो तीर तलवार आदि वाले सभी मनुष्य आर्य होनेसे उच्चगोत्री भी जरूर ही
हथियार चलाने में होश्यिार हो- फौज, पुलिस के
सिपाही और शिकारी आदि वे असिकर्मार्य (२) सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक और श्लोकवार्तिक आदि जो आमद ख़र्च आदि लिखने में दक्ष हों वे मसिकार्य महान् ग्रन्थोंमें क्षेत्र-आर्य, जाति-आर्य, कर्म आर्य, चारित्र. (३ ) जो खेतीके औजार चलाना जानने वाले, स्वयं
आर्य और दर्शन आर्य ऐसे पांच प्रकारके आर्य बतलाये खेतीहरहलचलाने, खेत नौराने, झाडझूड़ काटने, घास हैं । जो आर्यखण्डमें उत्पन्न हुए हैं-ब्राह्मण हो वा खोदने, पानी सींचने, खेती काटने, ईख छीलने आदि शूद्र, छूत हों वा अछूत यहाँके क़दीम रहने वाले खेतके कामकी मजदूरी करने वालं हां वे कृषिकाय, (आदिम निवासी) हो वा म्लेच्छखण्डों से आकर बसे हुये ( ४ ) जो चित्रकारी आदि ७२ प्रकारके कलाकार--जैसे स्त्री-पुरुषोंकी सन्तानसे हों, वे सब क्षेत्र-आर्य हैं । जाति- चित्रकार, बहुरूपिये, नट, बादो, नाचनेवालं, गानेवालं, आर्य वे कहलाये जा सकते हैं, जो सन्तान क्रमसे आर्य ढोल-मृदङ्ग-वीणा-बांसरी-मारङ्गी-दोतारा-सितार आदि है, परन्तु इस समय आर्य-क्षेत्रों में न रहकर म्लेच्छ- बजानवाल, गजेवाल, इन्द्रजालिये, अर्थात् बाजीगर,
हैं।