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________________ वर्ष २, किरह]. रायचन्द भाग कुछ संस्मरण जाता है । पातर वैराग्यके विना मोषकी भगन देरासरोंमें, और मस्जिदों में ही होता है और दूकान नहीं होती। ऐसे पैराग्यकी लगन कविमें थी। . या दरवार में नहीं होता, ऐसा कोई नियम नहीं । व्यापारी जीवन इतना ही नहीं, परन्तु यह कहना धर्मको न सम. ॐ "वणिक वेर्नु नाम ह वूडू नव बोले, झनेके बराबर है, यह रायचन्द भाई कहते, मानते परिक तर्नु नाम, तोल मो नव तोबे। और अपने प्राचारमें बताते थे। बधिक तेहतुं नाम बापे बोल्यु ते पाले, ___ उनका व्यापार हीरे जवाहरातका था । वे भीबधिक तेहर्नु नाम ब्याज सहित धनवाले । रेवाशंकर जगजीवन झवेरीके साझी थे । साथमें विवेक तोज ए वणिक, सुलतान तोष ए शाव के, वे कपड़ेकी दुकान भी चलाते थे। अपने व्यवहारबेपार चुके जो पाखीमो, दुःख दावानल थाप छे" में सम्पूर्ण प्रकारसे वे प्रामाणिकता बताते थे, ऐसी -सामलभट्ट उन्होंने मेरे ऊपर छाप डाली थी । वे जब सौदा सामान्य मान्यता ऐसी है कि व्यवहार अथवा करते तो मैं कभी अनायास ही उपस्थित रहता। व्यापार और परमार्थ अथवा धर्म ये दोनों अलग उनकी बात स्पष्ट और एक ही होती थी । 'चाअलग विरोधी वस्तुएँ हैं । व्यापारमें धर्मको घुसे- लाकी' सरीखी कोई वस्तु उनमें मैं न देखता था । ड़ना पागलपन है। ऐसा करनेसे दोनों बिगड़ दूसरेकी चालाकी वे तुरंत ताड़ जाते थे; वह उन्हें जाते हैं। यह मान्यता यदि मिथ्या न हो तो अपने असल मालम होती थी। ऐसे समय उनकी प्रकुटि भाग्यमें केवल निराशा ही लिखी है क्योंकि ऐसी भी चढ़ जाती, और आँखोंमें लाली मा जाती, यह एक भी वस्तु नहीं, ऐसा एक भी व्यवहार नहीं मैं देखता था । जिससे हम धर्म को अलग रख सकें। धर्म कुशल लोग व्यापार-कुशल नहीं होते, धार्मिक मनुष्यका धर्म उसके प्रत्येक कार्यमें इस बहमको रायचन्द भाईने मिथ्या सिद्ध करके भलकना ही चाहिये, यह रायचन्द भाईने अपने बताया था। अपने व्यापारमें वे पूरी सावधानी जीवनमें बताया था। धर्म कुछ एकादशीके दिन ही, और होशियारी बताते थे । हीरे जवाहरातकी पर्यषणमें ही, ईदके दिन ही, या रविवारके दिन ही परीक्षा वे बहुत बारीकीसे कर सकते थे । यपपि पालना चाहिये; अथवा उसका पालन मंदिरोंमें, अंग्रेजीका ज्ञान उन्हें न था फिर भी पेरिस वगैरह बनिया उसे कहते हैं जो कभी झूठ नहीं बोलता; के अपने भाड़तियोंकी चिट्ठियों और तारोंके मर्मको बनिया उसे कहते हैं जो कम नहीं तोलता । बनिया वे फौरन समझ जाते थे, और उनकी कला समउसका नाम है जो अपने पिताका वचन निभाना झनेमें उन्हें देर न लगती। उनके जो तर्क होते थे, है; बनिया उसका नाम है जो ग्याज सहित मूलधन वे अधिकांश स ही निकलते थे। चुकाता है। बनियेकी तोल विवेक है; साहू सुलतानकी इतनी सावधानी और होशियारी होने पर भी तोलका होता है। यदि बनिया अपने बनिजको चक जाय वे व्यापारकी उद्विग्नता अथवा चिन्ता न रखते नो मंमारकी विपत्ति बढ़ जाय। -अनुवादक थे। दुकानमें बैठे हुए भी जब अपना काम ममाप्त
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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