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________________ वर्ष २, किरण ८] रायचद भाईके कुछ संस्मरण चापिस आया । इन दिनों समुद्रमें तूफान पाया राती पाठशालामें भी उन्होंने थोड़ा ही अभ्यास करता है, इस कारण जहाज रातको देरीसे पहुँचा। किया था। फिर भी इतनी शक्ति, इतना ज्ञान और मैं डाक्टर-बैरिटर--और अब रंगूनके प्रख्यात आसपाससे इतना उनका मान! इमसे मैं मोहित झवेरी प्राणजीवनदास मेहताके घर उतरा था । हुआ । स्मरणशक्ति पाठशालामें नहीं बिकती, रायचन्द भाई उनके बड़े भाईके जमाई होते थे । और ज्ञान भी पाठशालाके बाहर, यदि इच्छा हो डाक्टर साहबने ही परिचय कराया । उनके दूसरे जिज्ञासा हो-तो मिलता है, तथा मान पानेके बड़े भाई झवेरी रेवाशंकर जगजीवनदासकी लिये विलायत अथवा कहीं भी नहीं जाना पड़ता; पहिचान भी उसी दिन हुई । डाक्टर साहबने परन्तु गुणको मान चाहिये तो मिलता है-यह रायचन्द भाईका 'कवि' कहकर परिचय कराया पदार्थ-पाठ मुझे बम्बई उतरते ही मिला। और कहा--'कवि होते हुए भी आप हमारे साथ कविके साथ यह परिचय बहुत आगे बढ़ा। व्यापारमें हैं; आप ज्ञानी और शतावधानी हैं ।' स्मरण शक्ति बहुत लोगोंकी तीव्र होती है, इसमें किसीने सूचना की कि मैं उन्हें कुछ शब्द सुनाऊँ, आश्चर्यकी कुछ बात नहीं। शास्त्रज्ञान भी बहुतोंमें और वे शब्द चाहे किमी भी भाषाके हो, जिस पाया जाता है । परन्तु यदि वे लोग संस्कारी न हों क्रमसे मैं बोलूँगा उसी क्रमसे वे दुहरा जावेंगे। तो उनके पास फटी कौड़ी भी नहीं मिलती। जहाँ मुझे यह सुनकर आश्चर्य हुआ । मैं तो उस समय संस्कार अच्छे होते हैं, वहीं स्मरण शक्ति और ‘जवान और विलायत से लौटा था; मुझे भाषा शास्त्रज्ञानका सम्बन्ध शोभित होता है, और जगत्ज्ञानका भी अभिमान था । मुझे विलायतकी हवा को शोभित करता है कवि संस्कारी मानी थे। भी कुछ कम न लगी थी । उन दिनों विलायत से आया मानों श्राकाश से उतरा । मैंने अपना समस्त ज्ञान उलट दिया, और अलग अलग भा- अपूर्व अवसर एवो क्यारे भावो, षाओंके शक पहले तो मैंने लिख लिये--क्योंकि क्यारे थईशु बाह्यान्तर निग्रंथ को, मुझे वह क्रम कहाँ याद रहनेवाला था ? और सर्व संबंधर्नु बंधन तीच बेदीने, बादमें उन शब्दोंको मैं बाँच गया। उसी क्रममे विचरणु का महत्पुरुषने पंथयो । रायचन्द भाईने धीरेसे एकके बाद एक शब्द सर्वभावयी भौवासीन्य वृत्तिकरी, कह सुनाये । । मैं राजी इश्रा, चकित हुआ और मात्र हे ते संथमहेतु होप बो; कवि की स्मरण शक्तिके विषयमें मेरा उच्च विचार अन्य कारणे अन्य कर्श करपे महि, हुआ। विलायनकी हवा कम पड़नेके लिये यह देहे पण किंचित् मर्या नवजोप को। सुन्दर अनुभव हुआ कहा जा सकता है। कविको अंग्रेजीका झान बिल्कुल न था । उम गयचन्द भाईकी १८ वर्षको उमरके निकले ममय उनकी उमर पचीससे अधिक न थी । गुज- हुए अपर्व उद्गारोंकी ये पहली दो कड़ियाँ हैं। वैराग्य
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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