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________________ ४४२ ... अनेकान्त..... ... [ज्येष्ट, वीर- निय २४६४ - शिक्षा ...... अमर प्यार [श्री. यशपाल] [श्री भगवत्स्वरूप जैन 'भगवत्' - गजीने क्लासमें पढ़ाया-आपसमें झगड़ना बुरा है; .. जीवन-धन, हे जीवनाधार ! ७ वह पाप है। सात बरसके मु-नूने गुरूजीकी बात सुननी और हैं पत्र-युष्य यदि नहीं यहाँ- . पेटमें रखली। तो मैं अब द्वंद उन्हें कहाँ ? संध्याको पदकर घर लौटा तो उसने देखा कि मां- इस हृदय-कमल ही को लेकरबापमें झगड़ा हो रहा है। चरणों को दूं प्रेमोपहार । उसने कहा-माँ, आज गुरूजीने बताया कि प्रापस यदि मिले न मुझको अग्नि कहींमें झगड़ना बुरा है; वह पाप है। फिर होगी क्या अर्चना नहीं ? ले वन्हि वेदना की मन सेअगले दिन गुरूजीने क्लासमें पढ़ाया-जीव हत्या आरती उतारूँ हर्षधार ! बुरी है । जीवों पर दया करनी चाहिये । जल भी न मिले पर्वाह नहींसात बरसके मुन्ने गुरूजीकी बात सुनली और निकलेगी मुँह से आह नहीं ? पेटमें रखनी। करुणेश ! न होगा कुछ विलम्बसंध्याको पढ़कर घर लौटा तो उसने देखा उसके हग-जलसे लंगा पग पखार ! बाप बहुतसे जानवर मारकर लाए हैं। उसने कहा कछ भी न पास पर खेद नहीं - पिताजी, श्राज गुरूजीने बताया कि जीव हत्या बुरी है। जीवों पर दया करनी चाहिए। होगा पजा में भेद नहीं ! बस, अमर-लगन हो, अमर-चाहतीसरे दिन गुरूजीने क्लासमें पढ़ाया-भूखे-नंगेकी बैठा होमन में अमर-प्यार! सहायता करनी चाहिए, वह पुण्य है। सात बरसके मुजूने गुरूजीकी बात सुनली और पेटमें रखली। चार दिनन की चादनी, यह सम्पति संसार । संध्याको पढ़कर घर लौटा तो उसने देखा उसके 'नारायन' हरिभजन कर, यासौ होइ उबार । भाईने एक भूखे-नंगे भिखारीको दरवाज़ेसे फटकार कर तेरै भा0 कछु करौ, भलो कुरो संसार । भगा दिया है। 'नारायण' तू बैठक, अपनो भवन बुहार ॥ चौथे दिन सात बरसका मुन् स्कूल न गया । घर बहुत गई थोड़ी रही, 'नारायण' अब चैत । वालोंने पूछा तो उसने कह विषा-गुरुनी अच्छा नहीं काल-चिरैया चुगि रही, निसदिन आय खेत ॥ पनाते। सुभाषित
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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