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________________ ४२४ . . अनेकान्त [वैशाख, वीर निर्वाण सं०२४६५ कोई जीव अपनेको सबसे बड़ा समझता है तो भापके सामने मौजूद है। वीरके तत्वज्ञानका असर वह कभी भी उन्नत नहीं हो सकता, उन्नत होनेके सबके ऊपर है और भारत आज वीरके अहिंसावादका लिये कुछ त्याग अवश्य करना पड़ता है । दया कृतज्ञ है। हिन्दुओं और जैनियोंका मापसमें बड़ा और अहिंसाका जो महत्व जैनधर्ममें पाया है, वह प्रेम रहा है। भगवान्ने पुण्यका रास्ता बतलाया इतना अन्य किसी धर्ममें नहीं है। भगवान् वीरके था। जैनधर्म, बौद्धधर्म, और वैदिक धर्म ही भारतकी पैदा होनेसे यह बात तो निर्विवाद सिद्ध है कि सम्पत्ति हैं, बाक़ीके धर्म तो यहाँ बाहरसे आये हैं। यज्ञ-मार्ग पीछे पड़ा । महावीरका तस्व-शान बहुत भगवान महावीरने दुनियाँका सबा उपकार किया ऊँचा था। उन्होंने बतलाया था कि जीव सबमें है, था। उन्होंने संसारको बतला दिया था कि दूसरोंकिसीसे घृणा मत करो, दूसरोंको सुखी बनानेकी को दुखी रखना सबसे बड़ा पाप है । मैं जैनधर्म कोशिश करो। हमें यहाँ बहससे कोई मतलव को बड़ी भक्ति से देखता हूँ। मेरा तो यह सिद्धान्त नहीं है पर यह बात जरूर है कि भगवान वीरने है कि जैनधर्म एक अद्वितीय धर्म है। लोगोंको दयाका रास्ता बतलाया था, मांसाहारको अब रह जाती है बात वीर-जन्मोत्सवके छुट्टी हटाया था और दुनियाको प्रेमका पाठ दिया था। की। इसके लिये आपको सबसे पहले अपनी छुट्टी भाज जो कुछ भी अहिंसाका असर हमारे सामने है करनी पड़ेगी। मुझे इस बातका दुःख है कि भाज उसका श्रेय वीरके ही उपदेशको है। उसी उपदेश- सब धर्मोकी छुट्टी होते हुए भी जैनियोंकी कोई का फल है कि आज उतनी हिंसा नहीं है, जितनी बुट्टी नहीं है । छुट्टीका न होना हमारे लिये एक कि वैदिक कालमें थी। यद्यपि बुद्धने भी हिंसा- दुखकी बात है। श्रावण बदी अमावस्याको किसी का उपदेश दिया था लेकिन वह इतने ऊँचे पैमाने- किसी प्रान्तमें गाड़ी चलाने वाले बैलों तकको एक का नहीं था । आज बौद्धधर्मके दीक्षित देश हिंसासे दिनका विश्राम दे देते हैं। परन्तु भाज उस महिसा खाली नहीं हैं । जहाँ पर आज बौद्धोंकी बस्ती के देवताकी एक भी छुट्टी नहीं है, यह भारतके लिये है वहाँ मांसाहारकी कोई कमी नहीं है। लज्जाकी बात है ! मैं तो यह कहता हूँ कि भाप __ जैनधर्म हिन्दूधर्मसे बहुत कुछ मिला हुभा रहा लोगोंको अगस्त माह तक कोशिश कर लेनी है। उपनिषदग्रन्थों में बतलाये. हुए सिद्धांतोंसे जैन- चाहिये, क्योंकि अगस्तमें अगली सालका कलेण्डर सिद्धान्त मिलते जुलते हैं। हिन्दूधर्मकेउससे मिलने- बन जाता है। मैं तो इसके लिये हर समय सेवा का यही सवृतहै कि माज हिन्दूधर्म पशुबलि मादि करनेको तैयार हूँ । जितनी कोशिश मुझसे हो को स्वयं बुरी निगाहसे देखने लगा है । यद्यपि सकेगी मैं अवश्य छुट्टी करानेकी कोशिश करूँगा। पृथ्वीपर बड़े बड़े अत्याचार हुए और होरहे हैं परंतु अब मैं फिरसे भगवान्के गुण-गान करता हुमा जैन और हिन्दुभोंके कभी पापसमें गले नहीं कटे। उनको श्रद्धाञ्जलि समर्पित करके अपने भासनको जैनधर्म भिन्न धर्म है ऐसा नहीं है । भगवान् पीरको ग्रहण करता हूँ। (१-४-१९३९) साही सम्प्रदाय मानते हैं जिसका उदाहरण भाज
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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