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________________ देहली-महावीर-जयंती पर महत्वपूर्ण तीन भाषण भाषण श्री लोकनायक अणे M.LA. सभापतिजी, भाइयो भौर देवियो ! उस समय यज्ञादिकमें हिंसाका अधिक प्रचारमा मुझे इस बातका हर्ष है कि मैं आज भगवान लोग स्वार्थ के वशीभूत होकर जीवोंकी हिंसा में भी वीरके विषयमें यहां कुछ कहने खड़ा हुआ हूँ। धर्म मानने लगे थे । परन्तु वीरने उस यज्ञादित हमारा देश एक धार्मिक पलिको बिल्कुल मिटा देशहै। आज दुनियामें दिया । यद्यपि वेदोंमें चारोंतरफ क्रान्ति मची हिंसाका विधान है हुई है, परन्तु भारत परन्तु यह भगवान् कीरअब भी शान्त है। राष्ट्र के ही उपदेशका प्रभाव वही है जो भले बुरेका ॥ है कि लोग वेदोंमें विचार कर सके । हिंसाका विधान होते जहाँ भले बुरेका हुए भी बलि नहीं देते विचार नहीं, वह राष्ट्र ॥ है और न अब उनके नहीं कहा जा सकता।। ॥ ऐसे भाव ही होते है। भारत एक धर्म प्रधान यदि किसी सनातवी राष्ट्र है। इसने औरों श्री लोकनायक अणे एम. एल. ए. " माईसे हम यहमें पर को रास्ता बतलाया है। श्री० लोकनायक अणे परखे हुए पुराने राष्ट्र-सेवक बलि देनेको कहें और यद्यपि भारतमें | हैं। सन ३२ के असहयोग आन्दोलनमें श्राप कांग्रेसके वेद-वाय दिलामी प्रत्येक धर्म अहिंसाको । डिक्टेटर जैसे जोखिम और उत्तरदायी पद पर रह चुके है तो वह हमें ही पटा मानता है परन्तु जो || हैं। वर्तमानमें श्राप केन्द्रीय असेम्बलीके एक सुलझ || देवाफ समझता है। अहिंसाका वर्णन महा- || हुए सदस्य हैं । आपकी विद्वता और वक्तृत्वताके शत्रु- यह सब असर भगान वीरने किया है वह और | मित्र सभी कायल है। आपके व्यक्तित्व पर भारतको ... वीरका ही है लेकिन किसीमें नहीं है। भग- || अभिमान है। || मनुष्य वही विजयी वान् वीरने बतलाया " = = = oa d होता है जो बजे है कि सबसे पहले जीवको दूसरोंसे प्रेम करना चा- 'स्वयं अच्छी वरह देख लेता है। मन हिये। अपने दिलको साफ किये बिना म्नति कमी वान वीरने पहले अपनी शुद्धि करती थी। भी न हो सकती। जब भगवान् वीर पैदा हुए थे, वे दूसरोंका कल्याण कर पाये थे । की
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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