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ले०--अयोध्याप्रसाद गोयलीय] KARTERRIERRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRY
(१५) . . . . . वही पराजित और बन्दीके रूप में अपनी प्रजाके सामने । महर्षि व्यासदेवके पुत्र शुकदेव संसार में रहते हुए इस जिल्लतसे घुमाया जा रहा था कि जमीन फट जाती भी विरक्त थे। वे आत्म-कल्याणकी भावनासे प्रेरित तो उसमें समा जाना वह अपना गौरव समझता ! होकर घरसे 'जंगलकी ओर चल दिए । तब व्यासदेव भी दोपहरकी कड़ी धूप, हथनीकी नंगी पीठ, कैदीका वेश, पुत्रमोहते वशीभत उन्हें समझाकर घर वापिस लिवा. और फिर प्रजाके भारी समूहमेंसे गुजरना, दाराको लाने के लिये पीछे पीछे चले। मार्ग में दरियाके किनारे सहस्त्र बिन्नोंके कसे भी अधिक पीड़ा दे रहा था। कुछ स्त्रियाँ स्नान कर रहीं थीं। व्यासदेवको देखते ही वह रास्ते भर नीची नजर किए बैठा रहा, भलकर भी सबने बड़ी तत्परतासे उचित परिधान लपेट लिये- पलक ऊपर न किए । एकाएक जोरकी आवाज़ आईअङ्गोपाङ्गटँक लिये। महर्षि बासदेव बोले-"देवियो! “दारा । जब भी त निकलता था, खैरात करता हुआ वह अभी मेरा जवान पुत्र शुकदेव तुम्हारे पागेसे जाता था, आज तुझे क्या हो गया है? क्या तेरी उस निकलकर गया है उसे देखकर भी तुम नहीं सकुचाई। सखावतसे हम महरूम रहेंगे १५ दाराने नेत्र उठाकर एक ज्योकील्यों स्नान करती रहीं। जो युवा था, सब तरह पागल फकीरको उक्त शन्द कहते देखा । चट कन्धे पर योग्य था, उससे तो पस्वान किया, और मुझ अर्द्ध- पड़ा हुआ दुपट्टा उसकी ओर फेंक दिया और फिर मृतक समान वृद्धसे लजाकर परदा कर लिया, यह भेद नीची नज़र करली। फकीर “दारा जिन्दाबाद के नारे कुछ समझमें नहीं आया।" स्त्रियाँ बोलीं-"शुकदेव लगाता हुश्रा नाचने लगा । प्रजा दाराके इस साधुवाद युवा होते हुए भी युवकोचित विकारोंसे रहित है। पर आँसू बहाने लगी। उसने उस अापत्तिके समय भी वह स्त्री-पुरुषके अन्तरको और उसके उपयोगको भी अपने दयालु और दानी स्वभावका परिचय दिया । नहीं जानता उसकी दृष्टि में सारा विश्व एक रूप है।
(१७) . सांसारिक भोयोपभोमसे बालकके समान अबोध है। दार । मुसलमान होते हुए भी सर्वधर्म समभावी परन्तु देव ! श्रापकी वैसी स्थिति नहीं है। इसीलिये था। उसके हृदयमें अन्य धर्मों के प्रति भी सन्मान था। आपकी दृष्टिसे अपने के लिये परिधान लपेट लिया है।" वह जितना ही दयालु और स्नेहशील था, उतना ही
वीर प्रकृतिका भी था। शत्रुके हाथों मेड़ोंकी तरह मरना धर्मान्ध और पितृ-द्रोही औरंगजेब अपने पज्य पिता उसे पसन्द नहीं था । वह औरंगजेब द्वारा बन्दी बनाए साहवहाँको कैदमें डालकर बादशाह बन बैठा.तो उसने जानेपर कमरेमें बैठा हुया चाकसे सेव छील रहा था अपना मार्ग निष्कंटक करने के लिये शुजा और मुराद कि औरंगजेबकी ओरसे उसका वध करने के लिये नामके अपने दो सगे भाइयोंको भी लगे हाथों यमलोक घातक आए. घातकोंको आते देख उसने प्राण-भिवाके पहुँचा दिया ! सल्तनतके असली उत्तराधिकारी बड़े लिये गिड़गिड़ाना पाप समझा और चुपचाप प्रात्मभाई दारा को भी गिरफ्तार करके एक भद्दी और बढ़ी समर्पण करना कायरता जानी। तलवार न होनेपर भी हक्नीकी नंगी पीठपर बिठाकर देहलीके मुख्य मुख्य सेव छीलनेवाले चाकसे ही प्रात्म-रक्षाके लिये तैयार हो बामातेमेसे उसको धुमाया गया। कहनेको जुलस था, गया और अन्तमें आक्रमणको रोकने का प्रयत्न करता पर पैशाचिक वांडव था । जिन बाजारोंमें दारा युवराज हुआ जामदोंकी तरह मरकर वीरगतिको प्राप्त हुआ। और स्थानापन सम्राटकी हैसियतसे कभी निकलता था,