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वर्ष २, किरण ]
सेठ सुगनचन्द
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साहबको पानी पिलाए ? और जब सेठ साहबने इखियाके शासन कालतक आपके राज खजांची माँगा है तो इनकार भी कैसे करे? उसे असमंजसमें रहे! माज भी उनके वंशमें बीपी०डी०रामचन्दजी पड़ा हुआ देख सेठ साहबने स्वयं ही हाथ धोकर विद्यमान हैं जो देहली पंचायत के जरनल सेक्रेटरी पानी पीलिया।
"इशारा पाते ही कर्मचारी गिन्दौड़ा ले आए। मुझे यह लेख लिखने के लिये बहुत-सी बातें वह विचारा जैन अत्यन्त दीनता और लज्जाके वयोवृद्ध चन्दूलालजीसे माई पन्नालालजीकी साथ कुछ सटपटाता-सा बोला-"गरीब परवर! सहायतासे सात हुई है जिसके लिये में उनका मुझे क्यों काटोंमें घसीट रहे हैं ? भला गिन्दौड़ा भाभारी हूँ। बाबा चन्दूलालजी भी क सेठजीके देनेके लिये आपको तकलीफ उठानेकी क्या पारू बंशमेंसे ही हैं। रत थी ? मुझे गिन्दौड़ा लेनेमें क्या उन्न हो सकता था, मगर..........?"
"अजी वाह, भाई साहब ! यह भी आपके कहनेकी बात है, मैं तो खुद ही आपका माल बरौर इतिहास सिखाता है कैसे गिर जाते हैं उठने वाले। आपसे पूछे लेकर खा चुका हूँ, फिर आपको भव इतिहास सिखाता है कैसे उठ जाते है गिरने वाले। ऐतराज करनेकी गुंजाइश ही कहाँ रही ?"
इतिहास सभ्यता का साथी, ग़रीब जैन निरुत्तर था, गिन्दौड़े उसके हाथ इतिहास राष्ट्रका रक प्राण, में थे, सेठ साहब प्यारसे उसे थपथपा रहे थे और ऊँचे नीचे दुर्गम मग में, वह इस धर्मवत्सलताको देख मुका जारहा था।
बढ़ने वालों का अमर गान, एक नहीं ऐसी अनेक किंबदन्तियाँ हैं। कहाँ इतिहास सिखाता है कैसे बढ़ चलते हैं पढ़ने वाले। तक लिखी जाएँ।
यह जीवन और मृत्युका नित
संघर्षकहानी का पुराण, सेठ सुगनचन्दजीके पूर्वज सेठ दीपचन्दजी जीवन अनन्त, जीवन अजेय, अप्रवाल जैन, हिसारके रईस थे। देहली बसाए इसका जीता-जगता प्रमाण, जानेके समय शाहजहां बादशाहके निमन्त्रण पर इतिहास सिखाता है कैसे तू अजर-अमर जीने वाले। वे देहली आए थे और दरीवेके सामने ४-५ बीघे प्रस लेते हैं पर सलमरको, जमीन बादशाह द्वारा प्रदान किए जाने पर आपने भूकम्प, बहि, मुखे सागर, अपने १६ पुत्रोंके लिये पृथक-पृथक महल बनवाए वे यहां नष्ट करते निवास, थे। बादशाहने प्रसन्न होकर सात पार्चेका (जामा, हम वहाँ बसाते नये नगर, पायजामा, चादरजोड़ी, पेटी, पगड़ी, सिरपेच इतिहास सिखाता है कैसे जी उठते हैं मरने वाले, कलगी, तुर्रा) खिलभत भता फर्माया था। ईट