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________________ वर्ष २, किरण भाप और पुरुषार्थ तो अभी उनके नाश नहीं हुए , ज्योंके त्यो मौजूद है। चले जाते हैं बल्कि मुनियों के संवमें गते है, जहाँ शान इस ही प्रकार बस्ती छोड़कर जिस बनमें जाकर ये वैराग्यके सिवाय अन्य कोई बात ही नहीं होती है। रहते हैं, वहाँ भी शेर, भेड़िया आदिक मशु और डाँस, प्राचार्य महाराज उनकी पूरी निगरानी रखकर उन. मच्छर आदि कीड़े-मकौड़े सब पहलेसे ही वास करते है विचलित होनेसे बचाते रहते है। और इनके दूसरे बनमें चले जाने पर भी उसी तरा परन्तु गृहस्थियों का मामला बड़ा रहा है, उनका बास करते रहेंगे । बनसे आये हुए इन मुनियोंको परिषह काम विषय-कषायोंसे एकदम मुंह मोड़ना नहीं, उनको देनेके वास्ते उनके कर्मोंने इनको पैदा नहीं कर दिया बिलकुल ही दवा देना व बोर्ड बैठना भी नहीं, किन्तु । हैं। हाँ ! मुनियोंके यहाँ पाने पर उनको परिषह पहुँ- उनको अपने प्राधीन चलानेका ही होता है। उनका चानेके निमित्त कारण ये ज़रूर बन गये हैं । दिनको यह काम काले नाग खिलानेके समान है इसीसे बहुत कड़ी धूपका पड़ना, रातको ठंडी हवाका चलना, बारिश- ही कठिन और बहुत ही नाजुक है। मुनी तो विषक का यरसना, बरफका पड़ना आदि भी जो कुछ अब हो कायोंको जहरीले साँप मानकर उनसे दूर भागते है, रहा है वही इन मुनियोंके प्रानेसे पहले भी होता था दूर भागकर उनको पास तक भी नहीं पाने देते है, और जब ये मुनि दूसरे बनको चले जायेंगे तब भी होता परन्तु गृहस्थी स्वयं विषय-कषायोको पालते हैं, अर्थात् रहेगा । इससे स्पष्ट सिद्ध है परिषहका सब सामान भी विषय-भोग भी करते हैं और कोष-मान-माया-लोम प्रादि मुनियोंके कर्मोंने नहीं बनाया है किन्तु उनके यहाँ आने सभी प्रकारकी कषायें भी. करते हैं। सच पुखिये तो ये पर निमित्त कारण जरूर हो गया है । जो सचे मुनि कषाय ही तो गृहस्थीके हथियार होते है जिनके सहारे महाराज होते हैं वे इन सब परिषहोंको समभावके साथ अपना गृहस्थ चलाते हैं, अपने गृहस्थके योग्य सब सहन करते हैं किंचित मात्र भी दुख अपने मनमें नहीं प्रकारकी सामग्री जुटाते हैं और जुटी हुई सामग्रीकी लाते है. न अपने ध्यानसे ही विचलित होते है। रक्षा करते हैं। परन्तु ये विषय-कवाय काले नागके यदि पापी मनुष्य भी उनको दुख देते हैं, अपमान करते समान अत्यन्त जहरीले और केहरिसिंहकी तर महा है वा अन्य प्रकार पीड़ा पहुँचाते है तो भी वे कुछ भयानक तथा खूनके प्यासे होते है, जिनको वयमें खयाल नहीं करते हैं, कोष और मान श्रादि कर्मोंको. रखना और अपने अनुसार चलाना कोई प्रासान बात किचिंतमात्र भी उभरने नहीं देते हैं अपने महान पुरु- नहीं है। इसके लिये बड़ी होशियारी, बड़ी मारी हिम्मत पार्थसे उनको दबाये ही रखते हैं, दबाये ही नहीं, किन्तु बड़ा दिलगुर्दा और बड़ी सावधानीकी ज़रूरत है और सभी प्रकारकी कषायोंको, सारे ही राग-द्वेषको अथवा इस कारण ये काम वे ही कर सकते है जो महान् साहसी सारे ही मोहनीय कर्मको जड़-मूलसे नाश करनेके ही और पूर्ण पुरषार्थी होते है । करा चुके और मारे गये, यलमें लगे रहते हैं । इस ही कारण वे धन्य है और जरा भी किसीने असावपानी की और बहरीले सांपोने पजने योग्य है। उसको मां दबोचा; फिर तो विषय-कषायोंका पहर खोटे निमित्तोंसे बचे रहने के वास्ते मुनि विषयं- बढ़कर वह ऐता बेहोय वा उन्मन्त होता कि अपने कषायोंसे भरी हुई बस्तीको छोड़कर जंगल में ही नहीं भले बुरेकी कुछ भी सुषि नहीं सती, विषय-कषायोंमें
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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