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________________ २, किस्सा .. मानोर पुरुषार्थ पार्यके द्वारा या दूसरों के द्वारा मिलाये हुए निमितकाही मिठाई. या खटाई खाकर उसे, लिलादे। इसी प्रकार है। कर्मका काम तो एकमात्र इतना ही है कि जैता. कर्म भी जीवोंमें तरह तराकी विषय और कषाय पैदा निमित्त मिले उसके अनुसार जीवको सुखी वा दुसी करते यते है परन्तु उनका यह काम नहीं कि जीवकरके। ... . में प्रेसी विषय या कषाय पैदा की उसके अनुरूल या - इस एक ही ससारमें अनन्ते जीवों और अनन्ते प्रतिकूल वस्तुएं भी इधर उपरसे खीचकर उसको खाद। पुद्गल पदार्थोंका निवास है और वे सब अपना अपना : क्या बिल्लीको भूख लगने पर उसके ही शुभ कर्म काम करते रहते हैं, जिससे अापसमें उनकी मुठभेड़ होती चूहोंको बिलमेंसे बाहर निकाल कर फिराने लगते है, रहती है-रेल व सरायके मुसाफिरोंकी तरह संयोग-वियोग जिससे बिल्ली प्रासानीसे पका कर खाले मा धोके होता ही रहता है। एकका कर्म किसी दूसरेको खींच नहीं खोटे कर्म ही बिल्लीको पकाकर खाते हैं, जिससे वह लाता और न खींच कर ला ही सकता है। चहोंको मार डाले ? यदि पिछली बात ठीक है तो जब ___ कोका काम तो जीवमें एक प्रकारका बिगार वा कोई मनुष्य किसी दूसरे मनुष्यको मार गलता है तो रोग पैदा करते रहना ही है । रोगीको जब रोगके कारण मारनेवाला क्यों पकड़ा जाता है और क्यों अपराधी जाड़ा लगता है तो ठंडी हवा बुरी लगती है, परन्तु उस- ठहराया जाता है उसको तो मरनेवालेके खोटे कोंका रोग उसको दुस्ख देनेके वास्ते ठंडी हवा नहीं चलाता ने ही मरनेके वास्ते मजबूर किया था, तब उस बेचारका न ठंडीहवा चलानेकी रोगमें सामर्थ्य ही होती है, रोगका क्या कुसूर ? परन्तु ऐसा माननेसे तो संसारका सबही तो सिर्फ इतना ही काम है कि ठंडी हवा लगे तो गेगी व्यवहार गड़बड़ों पर जाता है और राज्यका भी कोई को दुख हो, फिर जब रोगीको तेज़ बुखार चढ़ जाता प्रबन्ध नहीं रहता है । ऐसी हालतमें हिंसक, शिकारी, है तो ठंडी हवा अच्छी और गर्म हवा बुरी लगने लगती चोर, गकू, लुटेरा, धोकेबाज जालिम, जार, जालनाक, है, तब भी उसके रोगमें यह सामर्थ्य नहीं होती है कि बदमाश, प्रादि कोई भी अपराधी नहीं मरता है। को उसको दुख देनेके वास्ते गर्म हवा चलादे । इसी प्रकार जुल्म किसी पर हुआ है वह सब जब उस ही के कोसे कर्म भी जीवको सुख-दुख पहुँचानेके वास्ते संसारके हुआ-खुद उसीके कर्म चोर गव अन्य किसी जीवों तथा पुद्गल पदार्थोंको खींचकर उसके पास नहीं लालिमको जुल्म करनेके वास्ते खींचकर लाते हैं, तब लाते है, उनका तो इतना ही काम है कि उसके अन्दर जुल्म करने वालेका क्या कुसूर १ वह क्यों पकड़ा जाये ऐसा भाव पैदा करदें जिससे वह किसी चीज़के मिलनेसे और क्यों सजा पाये। . सुख मानने लगे और किसीसे दुख । . इस प्रकार यह बात किसी तरह भी नहीं मानी जा कफ़के रोगीको मिठाई खानेकी बहुत ही प्रबल सकती है कि भला-बुरा जो कुछ भी होता है यह सब इच्छा होती है, मिठाई खानेमें सुख मानता है और अपने ही कोंसे होता है, अपने कर्म उसके निमित्तखटाईसे दुख । पित्तका रोगी खटाईसे खुश होता है कारण बनते है अथका निमित्त कारणोंको जुयते ।। और मिठाईसे दुखी । परन्तु रोगीके रोगका यह काम कर्म जब हमारे ही किये हुवे है तब उनका बस भी हम नहीं है कि वह उसको सुखी वा दुखी करनेको कहींसे पर ही पखना चाहिये, दूसरों पर उनका ब यान
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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