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________________ अनेकान्त [वैशाख, वीर निर्वाण सं०२४६५ अन्य मी काँकी उदीर्णा निमित्त कारणों के मिलनेसे एक हड़प करना चाह रहा है। इसीसे अपने अपने होती रहती है। कोंके मरोसे न रह कर सब कोई पूरी पूरी सावधानीके अकालमृत्युके इस कथनसे यह तो जाहिर ही है साथ अपने अपने जान मालकी रक्षाका प्रबन्ध करता कि जिस जीवकी आयु ६० वर्ष की थी, उसको है, चौकी-पहरा लगाता है, अडोसी पड़ौसी और नगरउसके आयुकर्मने ही २० वर्षकी उमरमें नहीं मार डाला निवासियोंका गुट्ट मिलाकर हर कोई एक दूसरेकी रक्षा है; अर्थात् उसके श्रायुकर्मने ही ऐसा कारण नहीं करनेके लिये तैय्यार रहता है, रक्षाके वास्ते ही राज्यका मिलाया है, जिससे वह २० वर्षकी ही श्रायुमें मर जाय। प्रबन्ध किया जाता है, और बड़ा भारी कर राज्यको दिया आयुकर्मका जोर चलता तो वह तो उसको ६० वर्ष तक जाता है। जिन्दा रखता; परन्तु निमित्त कारणके मुकाबिले में पाय- ऊपरके शास्त्रीय कथनसे यह बात भी स्पष्ट हो जाती कर्मकी कुछ न चल सकी, तब ही तो ४० वर्ष पहले ही है कि बुरे वा भले किसी भी प्रकारके निमित्त मिलानेका उसकी मृत्यु हो गई । जब प्रायु जैसे महा-प्रबल कर्मका दुख वा सुखकी सामग्री जुटानेका काम कर्मोका नहीं यह हाल है तब अन्य कर्मोकी तो मजाल ही क्या है,जो है; तब ही तो प्रत्येक मनुष्य कर्मोके भरोसे न बैठकर निमित्त कारणोंका मुकाबिला कर सकें-उनको अपना अपने सुखकी सामग्री जुटाने के वास्ते रात्रिदिन, पुरुषार्थ कार्यकरनेसे रोक सकें तब ही तो कोई जबरदस्त प्रादमी करता है, खेती, सिपाहीगीरी, कारीगरी, दस्तकारी, किसीको जानसे मार सकता है, लाठी जूते थप्पड़से भी दुकानदारी, मिहनत-मजदूरी, नौकरी-चाकरी आदि सब पीट सकता है, उसका रहनेका मकान भी छीन सकता ही प्रकारके धंधोंमें लगा रह कर खून पसीना एक करता है, धन सम्पत्ति भी लूट सकता है, उसकी स्त्री-पुत्रको रहता है, यहाँ तक कि अपने आरामको भी भुला देना भी उठाकर ले जा सकता है, चोरी भी कर सकता है, पड़ता है और तब ही ज्यों त्यों करके अपनी जीवन-यात्रा अन्य भी अनेक प्रकारके उपद्रव मचा सकता है, कर्मों में पूरी करनेके योग्य होता है । जो मनुष्य पुरुषार्थ नहीं यह शक्ति नहीं है कि इन उपद्रवोंको रोक दें । कोंमें करता है, कर्मोंके ही भरोसे पड़ा रहता है वह नालायक यह शक्ति होती तो संसारमें ऐसे उपद्रव ही क्यों होने समझा जाता है और तिरस्कारकी दृष्टि से देखा जाताहै। पाते ? परन्तु संसारमें तो बड़ा हाहाकार मचा हुआ है, ऊपरके शास्त्रीय कथनमें साफ लिखा है कि किसीजीव जीवको खारहा है, सब ही जीव एक दूसरेसे भय ने नीमके कड़वे पत्ते चबाये, जिससे उसका मुँह कड़वा भीत होकर अपनी जान बचाते फिर रहे हैं, चूहे बिल्ली- होगया तो उसके असातावेदनीय कर्मने उदय हो कर से डरकर इधर-उधर छिपते फिरते हैं, बिल्ली कुत्तेसे उसका जी बुरा कर दिया अर्थात् उसको दुखका अनुहर कर दुबकती फिरती है, मक्खियोको फंसानेके लिये मव करादिया और जब उसने मिठाई खाई, जिससे मकड़ीने अलग जाल फैला रक्खा है, चोर-डाकू अलग उसका मुँह मिठा हो गया, तो सातावेदनीय कर्मने उदय ताक लगा रहे हैं, दुकानदार ग्राहकको लूटनेको धुनमें है होकर उसका जी खुश कर दिया, उसको सुखका अनु और ग्राहक दूकानदारको हो उगनेकी फ़िकरमें है, धोका मव करा दिया । मावार्य-कड़वी-मीठी वस्तुका बुटामा फरव जालसाजीका बाजार गरम हो रहा है, एकको काँका काम नहीं है, यह काम तो मनुष्य के स्वयं पुरु
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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