________________
वर्ष २, किरण .]
भीपज्यपाद और उनकी रचनाएँ
४०७
पूजा जाना, ४ अौषधि ऋतिकी उपलब्धि, ५ और थी, जिसका उमेत देवसेनके दर्शनसार' प्रथमें पादस्पष्ट जलके प्रभावसे बोडेका सबबई में परिणतसे या प्रकाशमाप कर्णाटक रेरा निवासी थे। जाना (अथवा उस लोहेसे पट विशेष लाभ प्रास र भाषामे हुए 'पूज्यपादचरिते' तथा 'राजाबहोना)। इनपर विशेष विचार करने तथा ऐतिहासिक. लीक नामक ग्रंथों में आपके पिताका नाम 'माधवमह' प्रकाश डालनेका इस समय अवसर नहीं है। ये सब तथा माताका श्रीदेवी दिया है और आपको बामणाविशेष उहापोहके लिये यह समय और सामग्रीको कुलोच लिखा है। इसके सिवाय, प्रसिद्ध म्बाकरणाअपेक्षा रखती हैं । परन्तु इनमें असंभवता कुछ भी नहीं कार पाणिनि' ऋषिको चापका मातुल (मामा) मी बतहै-महायोगियोंके लिये ये सब कुडशस्य है। जबतक लाया है, जो समयादिककी रहिसे विश्वास किये जानेकोई स्पष्ट बाधक प्रमाण उपस्थित न हो तब तक 'सर्वत्र के योग्य नहीं है। बाधकामावादस्तुव्यवस्थितिः' की नीतिके अनुसार इनें .. माना जासकता है।
x जैसा कि दर्शनसारकी निम्न दो मावली पितृडल और गुलाल प्रकट है:। पितृकुल और गुरुकुलके विचारको भी इस समय सिरिपुजपादसीसो दाविसंघस्स कारगो दुहो। छोड़ा जाता है। हाँ, इतना ज़रूर कह देना होगा कि |आप मूलसंघान्तर्गत नन्दिसंघके प्रधान प्राचार्य थे,
- रामेण मजणंदी पाहुउपेदी महासत्तो ॥२४॥ स्वामी समन्तभद्रके बाद हुए हैं-प्रवणबेल्गोलके पंचसए छव्वीसे विकमरायस्स मरणपत्तस्स। शिलालेखों (नं० ४०, १०८) में समन्तभद्रके उल्लेखा- दक्खिण महुराजादो दाविडसंघो महामोहो ॥२॥ नन्तर 'ततः' पद देकर आपका उल्लेख किया गया है यह लेख पीरसेवामन्दिरमन्यमालामें और स्वयं पज्यपादने भी अपने 'जैनेन्द्र' में 'चतुष्टयं
संस्कृत-हिन्दी-टीकामोंके साथ मुद्रित और शीघ्र समन्तभद्रस्य' इस सूत्र (५-४-१६८) के द्वारा समन्तभद्रके मतका उल्लेख किया है। इससे अापका समन्त
प्रकाशित होनेवाले 'समाधितन्त्र' अन्यकी 'प्रस्तावमा' भद्रके बाद होना सुनिश्चित है। आपके एक शिष्य वन- का प्रथम अंश है। द्वितीय अंश अगली फिरणमें नन्दीने विक्रम स० ५२६ में द्राविसंघकी स्थापना की प्रकट किया बायगा।
[-भगवत भाग सुखके गीत गा लो प्रेम की दीपावली में,
मुग्ध होकर जगमगातो !! भाव सुलके गीत गा लो !!
सुर-धनुषकी रम्यता यहएक सबमें जायेगी ढह ।
फिर निसाकी स्वाम-मामा. बाग जावेगी भवावह ॥
गा उठेंगे पास नत हो
प्रभाकर ! ज्योति डालो ।
भाष सुखके गीत गा लो !! सपल सौदामिनि-सहित पन--१
जो रहा है विश्व पर तन ! एकपलमें मग्न होकर
जायेगा बलद वह बन । करुणा स्वरमें तब कहेगाहे अवनि ! मुझको दिपालो !
भाष सुखके गीत गा लो।।