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________________ भाग्य और पुरुषार्थ mi [ तक़दीर और तदवीर ] [ लेखक श्री० बाबू सूरजभानु वकील ] ( क्रमागत ) निमित्त मित्त कारण कमको कैसा नाच नचाता है और क्या से क्या कर डालता है, यह बात अकाल मृत्युके कथनसे बहुत अच्छी तरह समझमें श्रासकती है। कुंदकुंद स्वामीने भाव पाहुडकी गाथा नं० २५, २६ में अकालमृत्युका कथन इस प्रकार किया है— हे जीव ! मनुष्य और तिर्येच पर्यायमें तूने अनेक बार अकाल मृत्युके द्वारा महादुख उठाया है, विषके खानेसे वा विषैले जानवरोंके काटे जानेसे, किसी असह्य दुखके आपड़नेसे, अधिक खून निकल जानेसे, किसी भारी भयसे, हथियार के घातसे, महा संक्लेशरूप परिणामोंके होनेसे- श्रर्थात् अधिक शोक माननेसे वा अधिक क्रोध करनेसे आहार न मिलनेसे, सांस के रुकनेसे, बरफ़ में गलजानेसे, आगमें जलजानेसे, पानीमें डबजानेसे, पर्वत, वृक्ष वा अन्य किसी ऊँचे स्थानसे गिरपड़नेसे, शरीर में चोट लगनेसे, अन्य भी अनेक कारणोंसे श्रकाल मृत्यु होती रही है। इसीप्रकार गोमट्टसार कर्मकांडकी निम्न गाथा ५७ में भी विष, रक्त-क्षय, भय, शस्त्रघात, महावेदना, सांसरुकना, आहार न मिलना आदि कारणोंसे बँधी आयुका डीजना अर्थात् समयसे पहले ही मरण होजाना लिखा है। विसवेयणर तक्खयच्चयसत्थग्गहण संकिलेसेहि । उस्सासाहाराणं गिरोहदो छिन्जदे भाऊ ||५७| तत्त्वार्थ सूत्र ध्याय २ सूत्र ५३ का भाष्य करते हुए श्री अकलंकस्वामीने राजवार्तिक में और श्रीविद्यानन्दस्वामीने श्लोकवार्तिक में मरणकालसे पहले मृत्युका हो जाना सिद्ध किया है और लिखा है कि अकालमृत्युके रोकने के वास्ते श्रायुर्वेदमें रसायन श्रादिक वर्तना लिखा है जिससे भी अकाल मृत्यु सिद्ध है। इस ही प्रकार अन्य शारीरिक रोगोंके दूर करनेके वास्ते भी श्रौषधि श्रादिक वाह्य निमित्त कारणोंका जुटाना जरूरी बताया है। भगवती श्राराधनासार गाथा ८२३ का अर्थ करते हुए पंडित सदासुखजीने अकाल मृत्युका वर्णन इस प्रकार किया है " कितनेक लोग ऐसे कहे हैं, आयुका स्थिति-बंध किया सो नहीं छिदे है, तिनकं उत्तर कहे हैं- जो श्रायु नहीं ही छिदता तो विष भक्षण तैं कौन पराङमुख होता श्रर उखाल ( कराना) विष पर किस वास्ते देते, अर शस्त्रका घाततैं भय कौन वास्ते करते श्रर सर्प, हस्ती, सिंह, दुष्ट मनुष्यादिकनको दूरहीतें कैसे परिहार करते; श्रर नदी समुद्र कृप वापिका तथा श्रमिकी ज्वालामें पतन तें कौन भयभीत होता ।' जो आयु पूर्ण हुआ बिना मरण ही नहीं तो रोगादिकका इलाज काकूं करते, तातै यह निश्चय जानहूँ– जो आयुका घातका वाह्य निमित्त मिल जाय तो तत्काल श्रायुका घात
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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