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________________ दक्षिणके तीर्थक्षेत्र [वि०सं० १७४० के लगभगके एक यात्रीकी दृष्टिमें [ले०-श्री पं० नाथूरामजी प्रेमी] (छटी किरणका शेष अंश) इसके श्रागे द्रविड़ देशका प्रारंभ हुआ है जिसके से शिवालय तथा विष्णुकाँचीमें विष्णुमन्दिर है जहाँ ४ गंजीकोटिन, सिकाकोलि और चंजी+ चंजा- पूजा, रथयात्रायें होती रहती हैं । उरे स्थानों के नाम दिये हैं जिनमें सोने, चाँदी और इसके बाद कर्नाटक देशका वर्णन है जहाँ चोरोंका रत्नोंकी अनेक प्रतिमा हैं। संचरण नहीं है। कावेरी नदीके मध्य (तर!) श्रीरंगश्रागे जिनकांची, शिवकांची और विष्णुकांचीका पट्टण बसा हुआ है। यहाँ नाभिमल्हार (ऋषभदेय ), उल्लेख है जिनसे जिनकांचीके विषयमें बतलाया है चिन्तामणि (पाव) और वीर भगवान के विहार (मन्दिर) कि वहाँ स्वोपम जैनमन्दिर हैं और शिवकांचीमें बहुत- की भेंट की। वहाँ देवराय नामक राजाजो मिथ्या मती होने पर भी शुभमति है। भोज सरीखा दानी है नगंजीकोट शायद मद्रास इलाकेके कडाप्पा जिलेका गं डकोट है जिसे बोमनपल्लेके राजा कप्पने और मद्य-मांससे दूर रहने वाला है। उसकी सेनामें पांच बसाया था और एक किला बनवाया था। फरिश्ताके लाख सिपाही है। यहाँ हाथी और चन्दन होते हैं। उसकी अनुसार यह किला सन् १५८८ मे बना था । विजय- * दोड देवराजका समय ई० स०१६५६-७२ है नगरके राजा हरिहरने यहाँ एक मान्दर बनवाया था। और चिक्क देवराजका १६७२-१७०४ है । शील सिकाकोलि गंजाम जिलंकी चकाकोल तह- विजयजीके समयमें अर्थात ११८३ के लगभग पिकसील है। देवराज ही होना चाहिए । इसने लिंगायत शेवधर्म + चंजी कुछ समझमें आया। छोड़कर वैष्णवधर्म स्वीकार किया था। श्री रंगनाथx चजाउरि तंजौर है। की सुवर्णमूर्ति शायद इसीकी बनवाई हुई है।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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