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________________ ३८२ अनेकान्त श्रीमदनी ६५ लाखकी है जिसमेंसे १८ लाख धर्म कार्यमें खर्च होता है— श्राठ लाख ठाकुर (विष्णु) के लिए, चार लाख जिनदेव के लिए और छह लाख महादेव के लिए । रंगनाथकी मूर्ति सुवर्णकी है। हरि शयन मुद्रामें है और गंगाधर (शिव) वृषभारूढ़ हैं । इनकी पूजा बड़े टाटसे होती है। इसी तरह सिद्धचक्र और श्रादिदेवकी भी राजाकी श्रोरसे अच्छी तरह सेवा होती है । देवको चार गांव लगे हुए हैं, जिनसे ढलक नाता है। यहाँ के श्रावक बहुत धनी, दानी और दयापालक है । राजाके ब्राह्मण मन्त्री विशालाक्ष जिन्हें बेलांदुर पंडित भी कहते हैं विद्या, विनय और विवेकयुक्त हैं । जैनधर्मका उन्हें पूरा अभ्यास है । जिनागमोंकी X तीन बार पूजा करते हैं, नित्य एकासन करते हैं और केवल बारह वस्तुएँ लेते हैं। जैन शासनको दिपाते हैं। राज-धुरन्धर हैं। उन्होंने वीर प्रासाद नामका विशाल मन्दिर बनवाया है, जिसमें पुरुषप्रमाण पीतल की प्रतिमा है । सप्तधातु, चन्दन और रत्नोंकी भी प्रतिमायें है । इस कार्य में उन्होंने बीस हजार द्रव्य उत्साहसे खर्च की है। ये पुण्यवन्त सात क्षेत्रोंका पोषण करते हैं, पंडितप्रिय, बहुमानी और सज्जन है। प्रति वर्ष [ वैशाख, वीर - निर्वाण सं० २४६५ माघकी पूनों को गोमट्टस्यामीका एकसौ आठ कलशोंसे पंचामृत अभिषेक करते हैं। बड़ी भारी रथयात्रा होती है । गोमहस्वामी श्रीरंगपट्टण से बारह कोस पर हैं, जो बाहुबलिका लोक प्रसिद्ध नाम है । चामुंडराय जिनमतीने यह तीर्थ स्थापित किया था। पर्वतके ऊपर अनुमान ६० हाथकी कायोत्सर्ग मुद्रावाली यह मूर्ति है । पास ही बिलगोल (श्रवणबेलगोल) गाँव है । पर्वतपर दो और शेष ग्राममें इक्कीस मिलाकर सब २३ मन्दिर हैं । चन्द्रगुप्तराय ( चन्द्रगुप्त बस्ति ) नामक मन्दिर भद्रबाहु गुरुके अनशन ( समाधिमरण ) का स्थान है । गच्छके स्वामीका नाम चारुकीर्त्ति ( भट्टारक पट्टाचार्य ) है । उनके श्रावक बहुत धनी र गुणी हैं। देवको सात गाँव लगे हुए हैं, जिनसे सात हजारकी श्रामदनी है । दक्षिणका यह तीर्थराज कलियुगमें उत्पन्न हुआ है । इसके श्रागे कनकगिरि* है जिसका विस्तार पाव * कनकगिरि मलेयूरका प्राचीन नाम है । मैसूर राज्यके चामराजनगर तालुकेमें यह माम है। प्राचीन कालमें यह जैन तीर्थ के रूपमें प्रसिद्ध था और एक महत्त्वपूर्ण स्थान गिना जाता था । कलगर ग्राममें सरोवर के तटपर शक संवत् ८३१ का एक शिलालेख मिला है जिसमें लिखा है कि परमानदी कोंगुणि वर्माके राज्यमें कनकगिरि तीर्थपर जैनमन्दिरके लिए श्री कनकसेन भट्टारककी सेवामें दान दिया गया । ( देखो मद्रास और मैसूरके प्राचीन जैनस्मारक ।) यहाँ पहले एक जैन मठ भी था जो अब श्रवणबेलगोलके अन्तर्गत है । कनकगिरि पर बीसों शिलालेख मिले हैं। शक १५६६ के एक लेखमें इसे 'हेमाद्रि' लिखा है जो कनकगिरिका ही पर्यायवाची है । शक सं० १७३५ में यहाँ देशीय x संभव है उस समय श्रीरंगपट्टणमें भी धव- गणके अमणी और सिद्धसिंहासनेश भट्टाकलंकने लादि सिद्धान्त पंथ रहे हों । समाधिपुर्वक स्वर्गलाभ किया । * मैसूर से दक्षिण - पूर्व ४२ मील पर येलान्दुर नामका एक गाँव है । विशालाक्ष उसी गाँवके रहने वाले थे, इसलिए उन्हें येलांदुर पंडित भी कहते थे । चिक्कदेवराज जब नज़रबन्द था तब विशालाक्षने उसपर अत्यन्त प्रेम दिखलाया था । इस लिए जब सन् १६७२ में वह गद्दीपर बैठा, तब उसने इन्हें अपना प्रधान मन्त्री बनाया । सन् १६७७ में इन्होंने गोम्मटस्वामीका मस्तकाभिषेक कराया ।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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