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________________ वर्ष २, किरण ६] भाग्य और पुरुषार्थ ही पड़ता है। कारण इसका एकमात्र यही है कि रेल में नहीं, ऐमा मानना तो बिल्कुल ही हँसीकी बात होगी। सफर करनेके कारण हमारा उनका संयोग हो गया है असल बात तो यह ही माननी पड़ेगी कि म्याह हमारे कर्म हमको दुख सुख देने के वास्ते उनको उनके वालेके यहां भी उसके अपने ही कर्मोंसे विवाह प्रारम्भ घरोंसे ढंचकर नहीं ले पाये हैं, हमारी ही तरह वह सब हुश्रा और मरने वालेके यहां भी उसके अपने ही कर्मोसे भी अपनी जरूरतोंके कारण ही यहां रेल में सफर करनेको मौत हुई, परन्तु पड़ौसमें रहने के संयोगसे वह हमारी आये हैं। हमारे कर्मोका तो कुछ भी ज़ोर उन पर नहीं नीदमें खलल डालने के निमित्त ज़रूर हो गये। चल सकता है और न उनके कर्मोंका कुछ ज़ोर हमारे इसको और भी ज्यादा सप्त करनेके लिये दूसरा ऊपर ही चल सकता है। दृष्टान्त यह हो सकता है कि कुछ वर्ष पहले यहां हिन्दुइस ही प्रकार नरक स्वर्ग आदि अनेक गतियोंसे श्रा स्तानमें लाखों मन चीनी जावास श्राती थी और खूब श्राकर जीव एक कुटम्बमें, एक नगरमें और एक देशमें मँहगी बिकती थी, जिससे हरसाल करोड़ों रुपया इकट्ठे हो जाते हैं, वह भी सब अपने अपने कर्मानुसार हिन्दुस्तान से जाया चला जाता था, हिन्दुस्तान कंगाल ही श्रा-श्रा कर जन्म लेते हैं, हमारे कर्म उनको खेंच और वह मालामाल होता जाता था, लेकिन अब कुछ कर नहीं ला सकते हैं। रेलके मुसाफिरोंकी तरह एक सालसे हिन्दुस्तानियोंने यहां ही चीनी बनानी शुरू करदी स्थान में इकट्ठा होकर रहने के संयोगसे उनके द्वारा भी है, जिससे यहां चीनी भी मस्ती हो गई है और रुपया भी हमारा अनेक प्रकारका बिगाड़ संवार होता है जो हमें यहाँका यहाँ ही रहनं लग गया है परन्तु जायावालोमेलना ही पड़ता है। दृष्टान्त रूप मान लीजिये कि की चीनीकी बिक्री बन दोने में उनके सब कारखाने एक हमारे किसी पड़ौसीके यहाँ बेटेका विवाह है जिसके पट हो गये हैं, तो क्या जावाबालोंके खोटे कर्मोंने ही कारण रात दिन गाजा बाजा, गाना नाचना, स्वाना जावावालोको हानि पहुँचाने के वास्ते हिन्दुस्तानवालोंखिलाना श्रादि अनेक उत्सव होते रहते हैं, उनके इम से चीनी बनाने के कारग्याने खुलवा दिये है ? नहीं ऐसा शोर-गुलसे रातको हमको नींद भर सोना नहीं मिलता नहीं माना जा सकता है, यहां बालोंने जो कारखाने है, जिससे हम कुछ दुखी होते हैं; तो क्या हमारे कर्मोने वाले हैं वह तो अपनेही कर्मोस या अपने ही पुरुषार्थही हमको यह थोड़ा मा दुख पहुँचाने के वास्ते पड़ौमीके से ग्वाले हैं, जावाबालोंके ग्वंटे काम वह क्यों खोलते, यहां उसके बेटेका विवाह रचवा दिया है? हाँ कारखाने खोलकर जायावालोको नुकसान पहुँचने___ ऐसा ही दूसरा दृष्टान्त यह हो सकता है कि पड़ौसीके के निमित्त कारण वह जरूर हो गये हैं। यहाँ कोई जवान मौत हो गई है जिससे उसकी जवान (नोट-लेख के अगले अंशमं निमित्त कारण विधवा रात दिन विलाप करती है, उसके इस विलापसे और उसकी शक्ति पर विशेष विचार किया गया है जो हमारी नींद में खलल पड़ रहा है, तो क्या हमारे कर्मोने पाठकों के लिये विचारकी बहुत कुछ नई सामग्री प्रस्तुत ही हमारी नींद में खराबी डालनेके वास्ते जवान पड़ौसी- करेगा और उसके माथही यह लेग्व अगले अंकमें को मारकर उसकी जवान स्त्रीको विधवा बनाया है! समाप्त होगा।) muster Sesoma
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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