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मानव-मन+
[ ले० - पं० नाथूरामजी डोंगरीय जैन ]
[ १ ]
विश्व रंगभूमें अदृश्य रह
बनकर योगिराज-सा मौन
मानव जीवनके अभिनयका
संचालन करता है कौन ?
[ ४ ] क्षणभंगुर यौवनश्री पर यह
इतराता है इतना कौन ?
रूप-राशि पर मोहित होकर
[ ३ ]
आशा और निराशाओं की धारा कहाँ बहा करती ? अभिलाषाएँ कहाँ निरन्तर नवक्रीड़ा करती रहती ?
शिशु-सम मचला करता कौन ?
[ ७ ] चित्र विचित्र बनाया करता
बिन रंग ही रह अन्तर्द्धान ।
[ २ ]
किसके इंगित पर संसृतिमें
किसने चित्रकलाका ऐसा
यं जन मारे फिरते हैं ?
पाया है अनुपम वरदान ?
मृग-तृष्णामें शांति-सुधाकी
अति कल्पना करते हैं ।
[ ६ ]
रोकर कभी विहँसता है, तो फिर चिन्तित हो जाता है। भावङ्गिके नित गिरगिट-सम नाना रंग बदलता है ॥
[ ५ ] बिन पग विश्व - विपिन में करता -
रहता कौन स्वच्छंद विहार ? वन सम्राट् राज्य चिन किसने
कर रक्खा सब पर अधिकार ?
[ - ] प्रिय मन ! तेरी ही रहस्यमय
यह सब जब कहानी है ।
कर सकता जगती पर केवल
मन ! तू ही मनमानी है ॥
[ ६ ]
किन्तु वासना-रत रहता ज्यों, त्यों यदि प्रभु चरणोंमें प्यार -- तो अबतक हो जाता भवसागर से बेड़ापार ॥
करता,