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________________ वर्ष २, किरण ६] उन्मत्त संसारके काले कारनामे ३४६ करवाया है वह कलकी बात नहीं है बल्कि इन पंक्तियोंके खिलाफ विचार रखने और बोलने वाला व्यक्ति फाँसी लिखने तक जनसंहार वहाँ पर भीषण रूपसे हो रहा और मौतकी सजासे कमका अपराधी नहीं माना जाता। है। हजारों औरतों और निरपराध बच्चोंको केवल जब प्रजातंत्रात्मक देशमें ही अधिकार-हीन जनताके इसलिए मौत के घाट उतार दिया गया है कि वे प्रजा- मुँहमें लगाम लगानेकी ही नहों,मुँह-सीमने तककी कोशियें तांत्रिक सरकारकी छत्रछायामें पल रहे थे, जो कि उसके जारी हैं, तो फैसिस्ट शासनमें होने वाले अत्याचारोका विचारोंके अनुकूल नहीं थी। यही नहीं जापानने तो कहना ही स्या है। जर्मनीमें नाजी-विरोधियों और चीनियोंके ऊपर जो जबरदस्त और भीषण अाक्रमण यहूदियोंकी दुर्दशा किसे कष्ट नहीं पहुँचाती ? प्रस्तु। कर रखा है उसका कारण भी उसने चीनियोंकी घर देखिये-आजादपार्क में जल्सा हो रहा है, विचार विभिन्नता ही बतलाई है । जापानियोंका कहना फला साहबके अमुक बात कहते ही उक्त विचारके है कि चीनी बोलशेविषमके अनुयायी होते जा रहे हैं। विरोधी सज्जनों (1) ने ईट पत्थर बरसाने शुरू कर दिये ! और जापान चाहता है कि वह अपने पड़ोसियोंको इस सैंकड़ोंके सर फूटे और दो चारने प्राणोंसे हाथ धोये !! खतरनाक मर्जसे बचावे । अतः जापानने चीनमें हर रासलीलामें कृष्णका पार्ट अदा करने वाले ममकिन कोशिश की, कि चीनी इस रूसी सिद्धान्तके फेर एक्टरके सर पर जो मकट होता है उसकी कलगी एक में न पड़ें, किन्तु जब उसे सफलता न मिली तब उसे पार्टीके कथनानुसार दायीं ओर दूसरीके कथनानुसार उसकी रहनुमाई करने के लिए मजबूरन इस प्राखिरी बायीं ओर होना चाहिये थी, बस, इसी बात पर झगड़ा संहार शस्त्रका प्रयोग करना पड़ा, आदि प्रादि ! हो गया और शायद सैकड़ों पायल हो गये !! यद्यपि जापानियोंने चीनपर जो आक्रमण किया वह देखिये-मस्जिदके सामनेसे बाजा बजाता है वह उस पर कब्जा करनेकी नीयतसे ही किया है, हुमा एक हिन्दुओंका जुलूस निकल रहा है। यद्यपि फिर भी यदि उसकी ही बात मानली जावे, तो यह ऐसे बाजों पर न तो पहिले कभी झगड़ा हुआ था, न प्रश्न विचारणीय ही रहेगा कि विचार-भिन्न होनेसे ही इस बाजेके बराबर ही शोर मचाने वाले दूसरे मोटर, स्या किसीके प्राण ले लेना चाहिये ? या उसे दुश्मन एंजिन, वायुयान या बादलों आदि पर कोई ऐतराज समझ लेना चाहिये ! किया जा सकता है और न अभी नमाज पढ़नेका ही विचार-विभिन्नता और स्वार्थ सिद्धि के फलस्वरूप वक्त है, तो भी धर्मधुरन्धर मुसलमानोंने हमला कर दम्भी जापान चीनपर हमला करके जो-जो अत्याचार दिया ! और तडातड़ लाठियाँ चलनेसे सैकड़ों सर फूट चीनियोंके कुचलनेमें कर रहा है, उनको नज़रन्दाज़ कर गये !! क्या यह सब जहालतसे भरी हुई अनुदारता देनेके बाद हमारी दृष्टि दुनिया में एक मात्र प्रजातंत्रका और असहिष्णुताका परिणाम नहीं है! दम भरने वाले उस देश पर जाती है, जहां कि जरा-सी हम समझते हैं कि अनादि कालसे ही प्रत्येक मासी विचार-विभिन्नताके कारण उसी देशके हजारों मनुष्य के विचार एक दूसरसे मिल रहे है और अनन्त काल गोलीसे उड़ा दिये गये। समाचार-पत्रोंके पाठकोंको तकरोगे।य ।। समाचार-पत्राक पाठकाका तक राग। यह बात दूसरी कि किसी किसी विषय मालूम होगा कि रूसमें मोसिये स्टैलिनकी सरकारके या बातके सम्बन्धमें एकसे अधिक मनुष्य सहमत हो
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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