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उन्मत्त संसारके काले कारनामे
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[ले. पं० नाथराम जी डोंगरीय जैन ]
: घाज हिन्दुस्तान में है
माज हिन्दुस्तानमें ही नहीं, दुनियाँ के तमाम उदार व्यवहार करनेकी शिक्षा देता है; किन्तु होता
का मुल्कोंमें मानसिक अनुदारता और इससे विपरीत ही है। क्योंकि इसके विचार मेरे विचारोंपाशविक असहिष्णुताका नग्न तांडव हो रहा है। एक से मिन्न है।" प्रायः यही सोचकर मानव-समाजका जाति दूसरी जातिसे, एक देश दूसरे देशसे, एक पार्टी अधिकांश भाग उसकी रहनुमाईका दम भरने वाले दूसरी पार्टीसे, एक माई दूसरे भाईसे, प्रायः इसलिये बड़े बड़े नामधारी नेता (Leaders) एक दूसरेके लड़ता है कि उससे भिन्न जाति, देश, पार्टी या भाईके कट्टर दुश्मन बने हुए हैं और उसके प्राणोंका अपहरण विचार भिन्न है और उसके अनुकूल नहीं है। कट्टर करने तक पर तुले हुए हैं। मुसलमान हिन्दुओं और ईसाइयोंको अपना महान् शत्रु केवल धार्मिक विचारोंमें ही विभिन्नता होने के केवल इसलिये समझता है कि वे उसके मान्य कुरान कारण भारतके हिन्दू और मुसलमानोंके असहिष्णुताशरीफ, खुदा और रीति-रिवाजोंसे सहमत नहीं हैं । इसी पर्ण भीषण दंगे और रक्तपात, जो कि आये दिन होते प्रकार अनुदार ईसाई या हिन्दू मुसलमानोंको भी उक्त रहते हैं, विश्वविख्यात हैं। अब ज़रा दूसरे मुल्कोंमें कारणोंसे ही अपना कट्टर शत्रु समझते हैं। होने वाले असहिष्णुता और हृदय संकीर्णता सम्बन्धी
यद्यपि अधिकांश धर्म अपने अपने शास्त्रोंमें मान्य काले कारनामों पर भी दृष्टिपात कीजिए-जर्मनी और एक ही ईश्वर, खुदा या गॉड (God) को ही सारी इटली रूसके स्पष्टतः इसलिए घोर शत्रु बने हुए हैं कि दुनियाँ और उसके मनुष्योंका कर्ता-धर्ता मानते हैं उसका सिद्धान्त प्रजातन्त्र और साम्यवादको मित्ति पर और इसीलिये उन सबके मतानुसार जिस परमपिता, खड़ा हुआ है और इटली व जर्मनीका उसके विरुद्ध खुदा या गॉडने हिन्दूको बनाया उसीने 'मुसलमान और डिक्टेटरशिप एवं फैसिष्ट बादके आधार पर । इन राष्ट्रो-' साईको भी पैदा किया, यह बात सिद्ध है; तो भी कट्टर की पारस्परिक शत्रुतामें और भी कई कारण हो सकते मुसलमान हिन्दुओंकी हस्ती मिटा देनेकी और अनुदार हैं और है, किन्तु जैसी कि समय समय पर हर हिटलर हिन्दू मुसलमानोंको नेस्तनाबूद कर देनेकी दिली ख्वाहिश और सीन्योर मुसोलिनीके मुँहसे ध्वनि निकलती रहती रखता है और इस प्रकार वह अपने संकुचित एवं है, मुख्य कारण विचार-विभिन्नता ही है । स्पेनमें प्रजाअनुदार दृष्टिकोण द्वारा मज़ेमें अपने ही मान्य धर्मशास्त्रों- तन्त्रात्मक शासनका, किन्तु जनरल फ्रांकोने वहाँ का गला घोंटता रहता है । इसी तरह प्रत्येक धर्मात्माका डिक्टेटरशिप कायम करनेके लिए विद्रोहके नाम पर जो धर्म यद्यपि संसारके संपर्ण मानवोंके प्रति मित्रतापर्ण अपने ही देशवासियोंका हृदयविदारक संहार किया व