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________________ ३३६ अनेकान्त गुण लक्षण आदिकी विवेचना है। अंतिम आठवें में प्रबंधात्मक काव्यके भेदोंका, और प्रेचयकाव्य, श्रव्य काव्य और नाटक आदिका कथन किया गया ' छन्द-शास्त्र छन्द-शास्त्रमें "छन्दानुशासन" नामक कृति पाई जाती है। मूल ग्रंथ २२५ श्लोक प्रमाण है। उस पर भी तीन हजार श्लोक प्रमाण सुन्दर स्वोपशवृत्ति है। यह भी आठ अध्यायोंमें बटा हुआ है । छन्द-शास्त्रमें यह ग्रंथ अपनी विशेष सत्ता रखता है । अन्य छन्द-ग्रंथोंसे इसमें अनेक विशेषताएँ हैं। संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषा के छन्दोंका अनेक सुन्दर उदाहरणोंके साथ इसमें विवेचन किया गया है। यह इसकी उल्लेखनीय विशेषता है। इसके अध्ययनसे छन्दोंका सरल रीतिसे उपयोगी ज्ञान हो सकता है। हमारे परम प्रतापी चरित्र नायकने शब्दानुशासन (व्याकरण), लिंगानुशासन ( कोष), काव्यानुशासन ( अलंकारादि ग्रंथ) और छन्दानुशासन, इस प्रकार चार महत्वपूर्ण ग्रंथोंकी रचना करके संस्कृत-साहित्य पर महान् और अवर्णनीय उपकार किया है। कहा जाता है कि इन्होंने बाद विवाद संबंधी "वादानुशासन” नामक थकी भी रचना की थी । किन्तु अनुपलब्ध होनेसे इस संबंध में भी लिखना कठिन है। लेकिन “प्रमाणकुछ मीमांसा" में इन्होनें जो "डल, जाति, निग्रहस्थान आदिका विस्तृत विवरण लिखा है; उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इनकी इस संबंध में कोई न कोई स्वतंत्र कृति अवश्य होनी चाहिये। लेकिन इनकी अनेक अन्य कृतियोंके समान ही संभव है कि यह कृति भी नष्ट हो गई होगी। [ चैत्र, वीर-निर्वाण सं० २४६५ अपर नाम “अध्यात्मोपनिषद" है । मूल १२०० श्लोक प्रमाण है । यह भी १२ हजार श्लोक प्रमाण स्वोपशटीकासे अलंकृत । मुमुत्तु जीवोंके लिये-उभय लोककी शांति प्राप्त करनेवालोंके लिये यह सरल और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह प्रकाश नामक १२ अध्यायों में विभाजित । इसमें ज्ञानयोग, दर्शनयोग, चारित्रयोग, सम्यक्त्व, मिथ्यात्व, गृहस्थधर्म, कषाय, इंद्रिय-जय, मनः शुद्धि, मैत्री आदि चार भावना, आसन प्राणायाम, अत्याचारधारणा, पिंडस्थ, पदस्थ श्रादि शुभध्यानोंके भेद, मनजय, परमानंद, उन्मनीभाव, श्रादि श्रनेक योग और अध्यात्म विषयोंका वर्णन किया हुआ है । शान्तरसपूर्ण श्रात्मोपदेश दिया हुआ है। यह भी अपनी कोटिका श्रनन्य ग्रंथ है। इसमें पातंजलिकृत योग-शास्त्र में वर्णित श्राठ योगांगोको जैनधर्मानुसार श्राचरणीय करनेका प्रयास किया गया है। इसमें श्रासन प्राणायाम संबंधी जो विस्तृत विवेचन पाया जाता है। उससे पता चलता है कि उस समयसे “हठ-योग" का प्रचुर मात्रामें प्रचार था इस ग्रंथ में "विक्षिप्त", यातायात, श्लिष्ट और सुलीन ये मनके ४ भेद सर्वथा नवीन और मौलिक किये गये हैं । निश्चय ही जैन श्राचार-शास्त्र और जैन तत्त्वज्ञान शास्त्रका प्रतिनिधित्व करनेवाले ग्रंथोंमेंसे एक यह भी कहा जा सकता है। आध्यात्मिक ग्रंथ आध्यात्मिक विषयमें आपकी रचना “योग-शास्त्र" स्तोत्र - ग्रंथ श्राचार्यश्रीने "वीतराग स्तोत्र" और "महादेवस्तोत्र" नामक दो स्तोत्र भी लिखे हैं। "वीतराग स्तोत्र" अर्हतदेवके विविध लोकोत्तर गुणोंका परिचायक, भक्तिरससे भरपूर और स्तुतिके सर्व गुणोंसे संपन्न प्रसाद गुण युक्त, प्रतिदिन पठनीय सुन्दर स्तोत्र है । यह अनुष्टुप छन्दमें होता हुआ भी अत्यंत आह्लादक और आकर्षक 1
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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