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२, किरण]
प्राचार्य हेमचन्द्र
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प्राचार्य हेमचन्द्र [ले. श्री रतनलाल संघवी न्याय-तीर्थ विशारद ]
(क्रमागत)
रस-अलंकार-ग्रन्थ
उदाहरण पूर्वक समझानेका सफल प्रयास किया गया साहित्यके प्रामाणिक अंग रूप रस, अलंकार, गुण, है।
" दोप, रीति श्रादिका वास्तविक और विस्तृत ज्ञान व्यंजना शक्ति के विवेचन में और शान्तरसकी सिद्धि करने के लिये प्राचार्य हेमचन्द्रकी इस संबंधमें"कान्यानु- में गंभीर और उपादेय मीमांसा की गई है । "सिद्धहेम" शासन" नामक सुन्दर कृति महान् और उच्चकोटिकी है। के समान ही इममें भी पाठ अध्याय है। पहला इसकी रचना सुप्रसिद्ध कान्यज्ञ मम्मट कृत "काव्य- प्रस्तावना रूप है, दूसरा रस संबंधी है। जिसमें । प्रकाश" के समान है । साहित्यशास्त्र के प्रमुख अङ्गका रसोंका एवं स्थायी, व्यभिचारी और साविक भावोंका अधिकारी रूपसे इसमें जो मार्मिक विवेचन किया गया भेद पर्वक वर्णन है। रमाभामका विवेचन भी है। है; उसमें प्राचार्य हेमचन्द्रकी सर्वतोमुखी प्रतिभाका तीसरे अभ्यायमें काध्य, रस, पद, वाक्य श्रादिके दोषोंकी और प्रकांड पोडित्यका अच्छा पता चलता है। यह मीमांसा की गई है। चौथमें माधुर्य, भोग और सूत्र-बद्ध ग्रंथ है। इस पर "अलंकार-चूडामणि" प्रसाद गुणोंका विवेचन है । पचिमें अनुप्रास, नामक २८०० लोक प्रमाण स्वोपशवृत्ति है। इसी लाटानुप्रास, यमक, चित्रकाष्य, श्लेष, वक्रोक्ति प्रकार इस पर "अलकार-वृत्ति-विवेक" नामक ४००० और पुनरक्ताभास प्रादि शम्दालंकारोंका वर्णन है। श्लोक प्रमाण एक दूसरी स्वोरश विस्तृत रीका मी है। छठेमें अर्थालंकारिका' विस्तार किया गया है। इन विशालकाय टीकाओंमें विस्तृत रूपसे मूल-भावोंको सातमें नायक, नायिका उनके भेद प्रमेंद और उनके