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________________ YOGINDU, HIS PARAMĀTMAPRAKĀŠA AND OTHER __WORKS अर्थात् योगीन्दुदेव और उनकी रचनायें प्रोफेसर ए० एन० उपाध्यायका बड़ी गवेषणासे लिखा हुआ महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक . अंग्रेजी ग्रंथ है । पृष्ठसंख्या १०८. मूल्य १) है । यह परमात्मप्रकाशके प्रारंभमें हैं, उसीमेंसे जुदा निकाला गया है। प्रवचनसार-[श्रीमत् कुन्दकुन्दाचार्यकृत प्राकृत मूल गाथायें, श्रीअमृतचन्द्राचार्य और श्रीजयसेनाचार्यकृत संस्कृतटीकाद्वय, पांडे हेमराजजीकृत हिन्दीटीका, प्रोफेसर उपाध्यायकृत अंग्रेजी अनुवाद, १२५ पृष्ठोंकी अति विस्तृत अंग्रेजी भूमिका, विभिन्न पाठ-भेदोंकी और ग्रन्थकी अनुक्रमणिका आदि अलंकारों सहित संपादित । ] सम्पादक-पं० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय एम० ए०, प्रोफेसर राजाराम कॉलेज, कोल्हापुर यह अध्यात्मशास्त्रके प्रधान आचार्यप्रवर श्रीकुन्दकुन्दका ग्रन्थ है, केवल इतना ही आत्मज्ञानके इच्छुक मुमुक्षु पाठकोंको आकर्षित करनेके लिए काफी है । यह जैनागमका सार है । इसमें ज्ञानाधिकार, ज्ञेयतत्त्वाधिकार, और चारित्राधिकार ऐसे तीन बड़े बड़े अधिकार हैं । इसमें ज्ञानको प्रधान करके शुद्ध द्रव्यार्थिकनयका कथन है, अर्थात् और सब विषयोंको गौण करके प्रधानतः आत्माका ही विशेष वर्णन है । इस ग्रन्थका एक संस्करण पहले निकल चुका है। इस नये संस्करणको प्रोफेसर उपाध्यायजीने बहुतसी पुरानी सामग्रीके आधारसे संशोधित किया है, और उसमें श्रीकुन्दकुन्दाचार्यका जीवनचरित, समय, उनकी अन्य रचनाओं, टीकाओं, भाषा, दार्शनिकता आदिपर गहरा विवेचन किया है। इसकी अंग्रेजी भूमिका भाषा-शास्त्र और दर्शनशास्त्रक विद्यार्थियोंके लिए तो ज्ञानकी खान है, और धैर्ययुक्त परिश्रम और गहरी खोजका एक नमूना है । इस भूमिकापर बम्बई विश्वविद्यालयने २५० ) पुरस्कार दिया है, और इसे अपने बी० ए० के पाठयक्रममें रखा है। इस ग्रन्थकी छपाई स्वदेशी कागजपर निर्णयसागर प्रेसमें बहुत ही सुन्दर हुई है । पृष्ठसंख्या ६००, ऊपर कपड़ेकी मजबूत और सुन्दर जिल्द बंधी है । मूल्य सिर्फ ५) है । स्याद्वादमञ्जरी-कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यकृत अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिकाकी श्रीमल्लिषेणमूरिकृत विस्तृत संस्कृतटीका स्याद्वादमञ्जरीके नामसे प्रसिद्ध है । इसी टीकाका पं० जगदीशचन्द्रजी शास्त्री, एम० ए० कृत सरल और विस्तृत हिन्दीअनुवाद है । मल्लिपेणसूरिने इस प्रन्थमें न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, वेदान्त, सांख्य, बौद्ध, और चार्वाक नामके छह दर्शनोंके मुख्य मुख्य सिद्धान्तोंका अत्यन्त सरल, स्पष्ट और मार्मिक भाषामें प्रतिपादनपूर्वक खण्डन करके सम्पूर्ण दर्शनोंका समन्वय करनेवाले स्याद्वाद-दर्शनका प्रौढ़ युक्तियोंद्वारा मण्डन किया है । दर्शनशास्त्र के अन्य ग्रंथोंकी अपेक्षा इस ग्रंथकी यह एक असाधारण विशेषता है कि इसमें दर्शनशास्त्रके कठिनसे कठिन विषयोंका भी अत्यन्त सरल,. मनोरंजक और प्रसाद गुणसे युक्त भाषामें प्रतिपादन किया है । इस ग्रंथके संपादन और अनुवादकी जितनी प्रशंसा की जाय उतनी थोड़ी है । अनुवादक महोदयने स्याद्वादमंजरीमें
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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