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________________ ( ३ ) परमात्मप्रकाश और योगसार [जैन रहस्यवादी और अध्यात्मवेत्ता श्रीयोगीन्दुदेवकृत अपभ्रंश दोहे, उनकी संस्कृतछाया, श्रीब्रह्मदेवसूरिकृत संस्कृतटीका, स्व० पं० दौलतरामजीकृत भाषा टीका, प्रो० उपाध्यायकी ९२ पृष्ठकी अंग्रेजी भूमिका, उसका हिन्दीसार, विभिन्न पाठभेद, अनुक्रमणिकायें, और हिन्दी अनुवादसहित ' योगसार ' ] सम्पादक और संशोधक- पं. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय, एम्. ए. अर्द्धमागधी प्रोफेसर राजाराम कॉलेज, कोल्हापुर । परमात्मप्रकाश अपभ्रंश भाषा - साहित्यका सबसे प्राचीन और अमूल्य रत्न है, आधुनिक हिन्दी, मराठी, गुजराती आदि भाषायें इसी अपभ्रंशसे उत्पन्न हुईं हैं, अतः भाषाशास्त्र के जिज्ञासुओंके लिए यह बड़े कामकी वस्तु है । भाषा-साहित्यके नामी विद्वान् प्रो० उपाध्यायजीने अनेक प्राचीन प्रतियोंके आधारसे इसका संशोधन संपादन करके सोनेमें सुगंधी कहावत चरितार्थ की है । पहले संस्करणसे यह संस्करण बहुत विस्तृत और शुद्ध है । इसकी भूमिका तो एक नई वस्तु है-ज्ञानकी खान है । इसमें परमात्मप्रकाशका विषय, भाषा, व्याकरण, ग्रन्थकारका चरित, समय-निर्णय और उनकी रचनाओंका परिचय, टीकाकार और उनका परिचय, बड़ी छान-बीन से किया गया है । अंग्रेजी भूमिकाका हिन्दीसार पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीने लिखा है । ग्रन्थ में योगीन्दुदेवने तत्कालीन जनसाधारणकी भाषामें बड़ी ही सरल किन्तु प्रभावो - त्पादक शैलीमें परमात्माके स्वरूपका व्याख्यान किया है। इसमें बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमामाका लक्षण, परमात्मा के रूप जाननेकी रीति, शुद्धात्माका मुख्य लक्षण, शुद्धात्मा के ध्यानसे संसार - भ्रमणका रुकना, परमात्मप्रकाशका फल आदि सैकड़ों ज्ञातव्य विषयोंका वर्णन है । समाधि-मार्गका अपूर्व ग्रन्थ है । इसकी हिन्दटिका भी बड़ी सरल और विस्तृत है । मामूली पढ़ा लिखा भी आसानी से समझ सकता है । ऐसी उत्तम पद्धतिसे सम्पादित ग्रन्थ आपने अभीतक न देखा होगा । ग्रन्थराज स्वदेशी कागजपर बड़ी सुन्दरता और शुद्धतासे छपाया गया है । ऊपर कपड़े की सुन्दर मज़बूत जिल्द बँधी हुई हैं । पृष्ठसंख्या ५५०, मूल्य केवल ४ || ) है । योगसार - यह श्रीयोगीन्दुदेवकी अमर रचना है, इसमें मूल अपभ्रंश दोहे, संस्कृतछाया, पाठान्तर और हिन्दीटीका है । १०८ दोहोंके छोटेसे ग्रंथमें आध्यात्मिक गूढ़वाद के तत्वोंका बड़ा ही सुन्दर विवेचन है । यह ग्रन्थ साक्षात् मोक्षका सोपान है। इसका सम्पादन और संशोधन प्रोफेसर ए० एन० उपाध्यायने किया है। पं० जगदीशचन्द्रजी शास्त्री एम० ए० ने सरल हिन्दीटीका लिखी है। बहुत अच्छे मोटे कागजपर सुन्दरतापूर्वक छपा है 1 पृष्ठसंख्या २८, मूल्य सिर्फ । ) परमात्मप्रकाशके अंतमें यह ग्रन्थ है । उसीमेंसे जुदा निकाला है ।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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