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________________ (२) १ उपदेशछाया और आत्मसिद्धि-श्रीमद्राजचन्द्रविरचित गुजरातो ग्रंथका हिन्दीअनुवाद पं० जगदीशचन्द्रजी शास्त्री एम० ए० ने किया है। उपदेशछायामें मुख्य चर्चा आत्मार्थके संबंध है, अनेक स्थलोंपर तो यह चर्चा बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी है । इसमें केवलज्ञानीका स्वउपयोग, शुष्क ज्ञानियोंका अभिमान, ज्ञान किसे कहते हैं ! कल्याणका मार्ग एक है, निर्धन कौन ? आत्मार्थ ही सच्चा नय है, आदि गहन विषयोंका सुन्दर वर्णन है। __आत्मसिद्धिमें श्रीमद्रायचन्द्र की अमर रचना है । यह ग्रंथ लोगोंका इतना पसंद आया कि इसके अंग्रेजी मराठी अनुवाद हो गये हैं। इसमें आत्मा है, वह नित्य है, वह कर्ता है घह भोक्ता है, मोक्षपद है, और मोक्षका उपाय है, इन छह पदोंको १४२ पद्योंमें युक्तिपूर्वक सिद्ध किया गया है। ऊपर गुजराती कविता है, नीचे उसका विस्तृत हिन्दी-अर्थ है । इस ग्रंथका विषय बहुत ही जटिल और गहन है, किन्तु लेखन-शैलीकी सरलता तथा रोचकताके कारण साधारण पढ़े लिखे लोगोंके लिये भी बोधगम्य और उपयोगी हो गया है। प्रारंभमें ग्रन्थकर्ताका सुन्दर चित्र और संक्षिप्त चरित भी है । पृष्ठसंख्या १०४, मूल्य सिर्फ ॥) है । २ पुष्पमाला मोक्षमाला और भावनाबोध-श्रीमद्राजचन्द्रकृत गुजराती प्रन्थका हिन्दीअनुवाद पं० जगदीशचन्द्रजी शास्त्री एम० ए० ने किया है । पुष्पमालामें सभी अवस्थावालोंके लिए नित्य मनन करने योग्य जपमालाकी तरह १०८ दाने ( वचन ) गूंथे हैं । मोक्षमालाकी रचना रायचन्द्रजीने १६ वर्षकी उम्रमें की थी, यह पाठ्य-पुस्तक बड़ी उपयोगी सदैव मनन करने योग्य है, इसमे जैन-मार्गको यथार्थ रीतिसे समझाया है। जिनोक्त-मार्गसे कुछ भी न्यूनाधिक नहीं लिखा है। बीतराग-मार्गमें आबाल वृद्धकी रुचि हो, और उसका स्वरूप समझें, इसी उद्देशसे श्रीमद्ने इसकी रचना की थी। इसमें सर्वमान्य धर्म, मानवदेह, सद्देव, सद्धर्म, सद्गुरुतत्त्व, उत्तम गृहस्थ, जिनेश्वरभक्ति, वास्तविक महत्ता, सत्य, सत्संग, विनयसे तत्त्वकी सिद्धि, सामायिक विचार, सुखके विषयमें विचार, बाहुबल, सुदर्शन, कपिलमुनि, अनुपम क्षमा, तत्त्वावबोध, समाजकी आवश्यकता, आदि एकसे एक बढ़कर १०८ पाठ हैं। गुजरातीकी हिन्दी अर्थ सहित अनेक सुन्दर कवितायें हैं। इस प्रथको स्याद्वाद-तत्त्व-बोधरूपी वृक्षका बीज ही समझिये। भावनाबोधमें वैराग्य मुख्य विषय है, किस तरह कषाय-मल दूर हो, इसमें उसीके उपाय बताये हैं । इसमें अनित्य, अशरण, अत्यत्व, अशुचि, आश्रव, संवर, निर्जर आदि बारह भावनाओं के स्वरूपको, भिखारीका खेद, नमिराजर्षि, भरतेश्वर, सनत्कुमार, आदिकी कथायें देकर बड़ी उत्तम रीतिसे विषयको समझाया है। प्रारंभमें श्रीमद् रायचन्द्रजीका चित्र और संक्षिप्त चरित्र भी है । भाषा बहुत ही सरल है । पृष्ठसंख्या १३०, मूल्य सिर्फ 1) है। ये दोनों ग्रंथ श्रीमद् राजचन्द्रमेंसे जुदा निकाले गये हैं।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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