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________________ - F HESH मूलाचार संग्रह ग्रन्थ है। (ले०-श्री पं० परमानन्द जैन शास्त्री) जैन-समाजमें 'मूलाचार' ग्रन्थ श्राचार्य कुन्दकुन्द- वह अभी तक मेरे देखनेमें नहीं आई। इनके सिवाय, " के ग्रन्थों के समान ही श्रादरणीय है । इसमें दो हिन्दी भाषाकी टीकाएँ भी उपलब्ध हैं । इन सब आचारांग-कथित यतिधर्मका-मुनियों के प्राचार-विचार- टीकात्रोंके कारण जैनसमाजमें इस ग्रंथके पठन-पाठनका का-अच्छा वर्णन है । साथ ही, अन्य भी कुछ श्राव- खूब प्रचार है। मूलाचारके रचयिता श्री वट्टकेर कहे श्यक विषयोंका समावेश किया गया है । ग्रंथकी गाथा- जाते हैं। परन्तु वे कौन है, कब हुए है, किसके शिष्य थे संख्या १२४३ है और वह निम्नलिखित बारह अधि- और उनका क्या विशेष परिचय है ? इत्यादि बातोका कारोंमें विभाजित है हमें कुछ भी पता नहीं है। कुछ लोगोंकी दृष्टिमें श्राचार्य १ मूलगुण, २ बृहत्पत्याख्यान संस्तर संम्तव, कुन्दकुन्द ही 'मूलाचार' के कर्ता हैं-ग्रंथकी कुछ ३ संक्षेपप्रत्याख्यान, ४ समाचार, ५ पंचाचार, ६ पिण्ड- प्रतियों में कुन्दकुन्दका नाम भी साथ में दर्ज है। शुद्धि, ७ पडावश्यक, ८ द्वादशानुप्रेक्षा, ६ अनगार- ग्रंथम कन्दकन्दाचार्यके ग्रंथोंकी बहुतसी गाथाको भावना, १० समयमार, ११ शीलगुण, १२ पर्यामि । देवकर पहले मेरा यह खयाल हो गया था कि हम इस ग्रन्थ पर एक टीका तो बारहवीं शताब्दी के ) मूलाचारके कर्ता कुन्दकुन्द ही होने चाहिये, और उसी श्राचार्य वसुनन्दीकी बनाई हुई 'पाचाग्वृत्ति' नामकी को मैंने 'अनेकान्त' की तीसरी किरणमें प्रकाशित अपने मिलती है, जो माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला में प्रकाशिन भी एक लेग्य द्वारा प्रकट किया था। परन्तु अब मलानारका हो चुकी है; और दूसरी 'मूलाचारप्रदीपिका' नामकी दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों श्राानायके ग्रन्थों के साथ संस्कृत टीका सकलकीर्ति प्राचार्य कृत भी उपलब्ध है तुलनात्मक दृटिसे अध्ययन करने पर नतीजा कुछ दूमरा जो पर्वटीकासे कईमौ वर्ष बादकी बनी हुई है। परन्तु ही निकला । और उमसे यह निश्चय हो गया कि इसके
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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