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________________ ३१२ श्रनेकान्त हैं कि हमने अनेक प्रकारकी सिद्धियोंके द्वारा अनेक भूत प्रेतोंको अपने वश में कर लिया है, जिससे हम जो चाहें वह वही करने को तैयार होजाते हैं। इन चालाक लोगोंके बकाये में आकर ये बुद्धिहीन मनुष्य अपनी प्रत्येक बीमारी, आपत्ति और अन्य सबही प्रकार के कष्टांके निवारण करनेके लिए इनही लोगों के पीछे-पीछे फिरने लग जाते हैं। इन मन्दबुद्धि हशियोंका तो आश्चर्यही क्या है, जबकि इस आर्यभूमि पर भंगी, चमार, कहार, कुम्हार आदि श्रमजीवी लोगोंमें आज तक भी ऐसाही देखने में आता है। वे भी अपनी सबही बीमारियों और कष्टों को किसी अष्ट भूतका ही प्रकोप मानते हैं उन्हीं में से कुछ चालाक लोग ऐसे भी निकल आते हैं, जो भूत प्रेतों के इस प्रकोपको दूर करनेकी शक्ति रखनेका बहाना करने लग जाते हैं, इस कारण बेचारे भोले- लोग अपने प्रत्येक कष्टमें इन चालाक लोगोंकी ही शरण लेते I गांव के इन गँवार लोगोंकी देखादेखी बड़े-बड़े सभ्य और प्रतिष्ठित घरानोंकी मूर्ख स्त्रियाँ भी अपने बच्चोंकी सर्व प्रकार की बीमारियों में इन्हीं मायाचारी भङ्गी चमारोंको बुलाती हैं, हाथ जोड़ती हैं, खुशामद करती हैं कि जिस प्रकार भी हो सके कृपा करके हमको वा हमारी बेटीबहूवा बच्चों को इन अदृष्ट भूत-प्रेतोंकी झपेट से बचाओ। इन मायाचारियों में से जो अति धूर्त होते हैं, वे तो यहांतक भी कहने लग जाते हैं कि हम अपने बस में किये भूतों के द्वारा चाहे जिसको जान से मरवादें वा और भी जो चाहे करा दें । इन धूर्तों का यह पराक्रम सुनकर मोहांध पुरुष उनके पीछे-पीछे फिरने लग जाते हैं, यहां तक कि बड़ेबड़े श्रेष्ठ और बुद्धिमान पुरुष भी अपने बलवान् चैरीका नाश करने के वास्ते इन्हीं का सहारा लेते हैं, वैरीको मारनेके वास्ते उस पर मूठ चलवाते हैं और अन्य भी अनेक प्रकारसे उनको हानि पहुँचानेका उपाय कराते हैं । इस प्रकार प्रतिष्ठित पुरुषोंके द्वारा इन भंगी, चमारोंको पुजता देखकर पढ़े लिखे विद्वानोंको भी लालच आता है, वे बीमारी आदिक सर्व प्रकारकी आपत्तियों का कारण भूत प्रेतोंके स्थान में सूरज शनि [ फाल्गुण, वीर- निर्वाण सं० २४६५ श्वर आदि क्रूर ग्रहों का प्रकोप बताकर सोना चांदी आदि देनेके द्वारा उनका प्रकोप दूर हो जानेका उपाय बताने लग जाते हैं, और धनवान लोग आई हुई श्रापत्ति दूर होने का यह सहज उपाय सुनकर तुरन्त ही उसे स्वीकार कर लेते हैं सोना चांदी आदि बहुमूल्य वस्तुएँ देकर इन क्रूर ग्रहोंकी दशाको टालनेका उपाय करने लग जाते हैं और यह नहीं सोचते हैं कि इस प्रकार धन दे डालनेसें क्या ये ग्रह अपनी चाल पलट देंगे ? जन्म कुण्डलीके जिस घर में स्थित होने से ये ग्रह हमारे वास्ते हानि कारक बताये जाते थे, उपाय करने से क्या अब वे उस घर से हट गये हैं ? यदि हट गये हैं तो क्या पिछली जन्म कुण्डली रद्द हो गई है और दूसरी शुभ ग्रहों वाली बनानी पड़ गई है ? नहीं ऐसा तो नहीं होता है । इसप्रकार के उपायों द्वारा न तो ग्रहों की चाल ही बदली जा सकती है और न इस बदली हुई नवीन चालकी कोई नवीन जन्म-पत्री ही बनती है, तब फिर इन उपायों द्वारा ग्रहोंका टलना क्यों मानते हैं ? इसका कोई भी उत्तर नहीं मिलता है ! इस प्रकार संसार में अफरीका के जंगली लोगों के समान अव्वल २ तो हानिकारक देवी देवताओं और भूत प्रेतों आदि की मान्यता शुरू होती है, जो लोगों के बहुत कुछ सभ्य हो जाने पर भी बनी रहती है, फिर उन्नति करते करते जब मनुष्य घर बनाकर रहने लगता हैं, खेती बाड़ी करता है, बैज डंगर रखता है, विवाह के बन्धन में पड़कर कौटुम्बिक जीवन बिताने लग जाता है, वस्तु संग्रह करता है और जब उसकी ज़रूरतें तथा कामनायें भी बहुत कुछ बढ़ जाती हैं, तब वह अपनी प्रबल इच्छाओं के वश होकर आधी पानी आग बिजली श्रादिक भयानक शक्तियों को भेंट चढ़ा कर केवल यह ही प्रार्थना नहीं करता हैं कि हमको विध्वंस मत करना, किसी प्रकारकी हानि मत पहुँचाना, किन्तु उनसे अपनी इच्छाओं और मनोकामनाओं की पूर्ति की भी प्रार्थना करने लग जाता है, जिससे होते होते ये शक्तियां सर्व प्रकार के कारज साधने वाली भी मानी जाने लगती हैं । यह दशा स्पष्ट रूपसे हमको वेदों के
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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