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________________ अदृष्ट शक्तियां और पुरुषार्थ [ले० श्री. बाबू सूरजभानुजी बकील ] मनुष्यों में सबसे अधिक पतित अवस्था इस समय भयंकर महामारी आती है वा दुष्काल आदि अन्य कोई 'अफरीकाके हब्शियोंकी है। कुछ दिन पहिले वे आपत्ति आपड़ती है तो ग्राम के लोग इकट्ठे होकर भैसे लोग नंगे रहते थे, घर बनाकर रहना नहीं जानते थे, न भाग आदि किसी बड़े पशुकी बलि देते हैं, चेचक आदि बीमाजलाकर भोजन बनाना ही उनको आता था । परन्तु अब रियोंको शान्त करनेके वास्ते मुर्गा, बकरीका बच्चा वा ईसाई पादरियोंके अथक परिश्रममे उनमें कुछ समझ-बूझ सूअरका बच्चा आदि भेंट चढाते हैं और प्रवे, लपसी, आती जाती है। पतितावस्थामें वे लोग बादलोंकी गरज खील-बताशे तो मामूली तौर पर छोटी-मोटी शक्तियोंको और बिजलीकी कड़कसे बहुत भयभीत होते थे और समझते भी चढ़ाते रहते हैं । सर्पकी पूजा की जाती है, गा-बजा ये कि कोई बलवती शक्ति हमारा नाश करनेको आरही कर खब स्तुति की जाती है और दूध पिलाया जाता है। है। इस कारण वे इन बादल और बिजली के आगे हाथ स्त्रिया बेचारी तो चूहों तकको पूजती है, हलवा बनाकर जोड़ते थे, मस्तक नवाते थे, और प्रार्थना करते थे कि उनके बिलोंमें रखती हैं और हाथ जोड़कर प्रार्थना हम तुम्हारी शरणागत हैं, हम पर क्षमा करो। वह सम- करती हैं कि हे मामा चूहों, हमारे घर की वस्तुएँ मत झते थे कि जिस प्रकार बलवान् पुरुप खुशामद करनेसे काटना। और भेंट-पूजा देनेसे शान्त होजाते हैं, उसी प्रकारके अफरीका के इन बुद्धिहीनोंको चलते-फिरते हई-कहे विधानोंसे ये गरजते बादल और कड़कती हुई बिजलियाँ मनुष्यके मरजानेका भी बड़ा अचम्भा होता है, वे नहीं भी शान्त हो जाएंगी। इसही कारण वे किसी कमज़ोर समझते कि यह क्या होगया है. इसही कारण हरते हैं मनुष्यको मारकर उनकी भेंट चढ़ाते थे, उनकी स्तुति कि कहीं वह शक्ति जो इस मृतक शरीर में से निकल गाते थे और गिड़गिड़ा कर प्रार्थना करते थे कि हम गई है और दिखाई नहीं देती, गुप्तरूपसे हमको कुछ तुम्हारे दास हैं हमको क्षमा करो। इसही प्रकार अांधी, हानि न पहुँचादे । इसकारण प्रतोंकी भी पूजा कीजाती पानी, अग्नि आदिसे भी डरकर भेंट चढ़ाते थे और पूजा- है। दिखाई न देने के कारण इन प्रतोंका भयतो इन प्रतिष्ठा किया करते थे । यही इनका धर्म था-इससे जङ्गली लोगोंके हृदय में बादल, बिजली आदि से भी अधिक वे और कुछ भी नहीं जानते थे। अधिक बना रहता है-विशेषकर एकान्तमें, अँधेरे में ___ बलवती शक्तियोंका यह भय मनुष्य में बहुत कुछ इनसे डरते रहते हैं। कोई मरगया, तो किसी भूतने ही समझ-बूझ पाजाने पर भी बना रहता है; जैसा कि प्राचीन मार दिया, किसीको बीमारी होगई, तो किसी भूत प्रेतने कालमें जब मनुष्य जहाज़ चलाकर समुद्र पार आने ही करदी, कोई गिर पड़ा चोट लग गई वा अन्य कोई जाने लग गए थे, तब भी समुद्र को मनुष्यकी बलि देते उपद्रव होगया तो किसी भूत-प्रेतका ही कोप होगया ! थे, फिर होते-होते मनुष्यकी बलि देना गज-श्राशासे बंद इस प्रकार हरसमय ही उनका भय बना रहता है। होगया तब इन भयङ्कर शक्तियोंको पशु-पक्षियोंकी बलि दी उनके इस भारी भयके कारण ही उनमेंसे कुछ जाने लगी। जैसाकि यहां आर्यभूमिमें अब तक भी जब चालाक लोग इन मूखौंको यह विश्वास दिलाने लगजाते
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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