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। कथा कहानी
ले०-अयोध्याप्रसाद गोयलीय
शाह होने पर भी इसके एक ही पत्नी थी । घरेलू कार्यों नववीर केसरी राणा प्रताप जगलों और पर्वत के अलावा रसोई भी स्वयं वेगमको बनानी पड़ती थी।
कन्दराम भटकत फिरते थे, तब उनका एक एकबार रसोई बनाते समय बेगमका हाथ जल गया तो भाट पेटकी ज्यालासे तंग आकर शहनशाह अकबर के दर उमने बादशाह कल दिनके लिये मोबनाने के लिए चार में पहुँचा और सिर की पगड़ी बग़ल में छुपाकर फशी नौकरानी रग्य देनेकी प्रार्थना की। मगर बादशाहने सलाम झुकाया । अकबरने भाटकी यह उद्दण्डता देखी यह कहकर बेगमकी प्रार्थना अस्वीकार करदी कि नो तमतमा उठा और रोपभरे स्वर में पूछा. पगड़ी "गज कोप पर मेरा कोई अधिकार नहीं है, वह तो उतार कर मुजग देना जानता है कितना बड़ा अपराध प्रजाकी और से मेरे पास केवल धरोहर मात्र है। और है' ? भाट अत्यन्त दीनतापूर्वक बोला - "अन्नदाता ! धद में में अपने कार्यों में व्यय करना अमानत में खयाजानता तो सब कुछ हूं; मगर क्या करूं मजबूर है ? यह नत है । बादशाह तो क्या, प्रत्येक व्यक्तिको स्वावलम्बी पगड़ी हिन्दूकुल भूपण गणा प्रतापकी दी हुई है. जब होना चाहिये । अपने कुटुम्बके भरण-पोषण के लिए, स्वयं वे आपके सामने न झुके, तब उनकी दी हुई यह पगड़ी कमाना चाहिये । जो बादशाह स्वावलम्बी न होगा, कैमे झका मकना था ? मेरा क्या है; मैं ठहरा पेटका उसकी प्रजा भी अकर्मण्य हो जायगी, अतः मैं राज-कोपकुत्ता, जहां भी पेट भरनेकी आशा देखी, वहीं मान में एक पैसा भी नहीं लमकता और मेरी हाथकी कमाई अपमानकी चिन्ता न करके पहँच गया । मगर जहां- मीमित है। उसमें नाम बताओ नौकरानी से सवी पनाह......?" अकबरने सोचा, यह प्रताप कितना महान जासकती है?" है, जिसके भाट तक शत्रके शरगणागत होने पर भी उसके स्वाभिमान और मर्यादाको अक्षरगा रखते हैं !
पाण्डवोंका चिाशत्रु दुर्योधन जय किसी शषु दाग
पन्दी कर लिया गया, तब धर्मराज युधिष्ठिर अत्यन्त गुलाम-वंशीय नासिरुद्दीन महमूद बादशाह अत्यन्त व्याकुल हो उठे। उन्होंने भीमसे दुर्योधनको छुड़ा मञ्चरित्र और धर्मनिष्ठ था । आजीवन इसने गज-कोष- लानेका अनुरोध किया। भीम युधिष्ठिरकी आशकी से एक भी पैसा न लेकर अपनी हस्त-लिखित पुस्तको अवहेलना करता हुआ बोला-"मैं और उस पापीको से नीवन-निर्वाह किया। भारतवर्षका इतना बड़ा बाद- कृदा लाऊँ ? जिस अधमके कारण भाज हम दर-दर के