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वर्ष २, किरण ५]]
आचार्य हेमचन्द्र
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"कुमारपालप्रतियोध, प्रभावकचरित्र, प्रबन्धचिन्तामणि, ग्रन्थोंमें इन कृतियोंका असाधारण और महत्वपूर्ण प्रबन्धकोश, और उपदेशतरङ्गिणी" आदि ग्रन्थोसे स्थान है । जाननेकी कृपा करें। महाराज कुमारपालका जन्म
इन काव्योंको "द्वयाश्रय" कहनेका तात्पर्य यह है संवत् ११४९ है । राज्याभिषेक संवत् ११९९ हैं और
कि एक तरफ तो कथा-वस्तुका निर्वाह व्यवस्थितरूपसे स्वर्गवास संवत् १२३० है । इस प्रकार लगभग ३१ वर्ष
चलता है और दूसरी ओर “सिद्धहेम" में आए हुए तक राज्य शासन करके ८१ वर्षकी आयु में आपका
"प्रयोग" क्रमपूर्वक काव्यशैलीसे व्यवहृत होते हुए देखे स्वर्गवास हुआ।
जाते हैं । प्राकृत महाकाव्यमें प्राकृत, शोर सेनी, मागधी हेमचन्द्रकी कृतियां-दो महाकाव्य
पैशाची, चूलिकापैशाची और अपभु श इन छः भाषा
ओंके सुन्दर साहित्यक पद्य और व्याकरणगत नियमोंके अब प्राचार्य हेमचन्द्र की साहित्यिक उत्कृष्ट कृतियों
श्रानुपूर्वीपूर्वक उदाहरणोंका अभूतपूर्व मामजस्य देखा का सिंहावलोकन करना अप्रासंगिक नहीं होगा ।
जाता है । इसकी कथा-वस्तु “सोलंकी वंश" वर्णन है। "सिद्धहेम" व्याकरण के सम्बन्धमे पहले लिखा जा चुका
जो कि मलगजस प्रारंभ होकर कमारपालक शासनहै । इसी व्याकरण में आई हुई संस्कृत शब्दसिद्धि और
वर्णन तक चलती है। प्राकृत शब्दसिद्धिका प्रयोगात्मक ज्ञान कराने के लिये "संस्कृतद्वयाश्रय' और प्राकृत द्वयाश्रय नामक दो
महाकविहिने भी "पाणिनी व्याकरण" में आई
हुई शब्दमिद्धिको समझाने के लिये रामायण की कथा महाकाव्योंकी रचना की है। इन महाकाव्योंके अध्ययन
वस्तु लेकर "भट्टिकाव्य" की रचना की है। किन्तु ऐतिमे विद्यार्थीको व्याकरण और व्याकरण के नियमोका
हामिक दृष्टिले उमका उतना मूल्य नहीं है जितना कि तथा काव्यमय शब्द कोषका भली भांति ज्ञान होसकता
हेमचन्द्र के इन महाकाव्योका । क्योंकि भट्टिकी कथाहै। मिहेम में आई हुई शन्दसिद्धि का प्रयोगात्मक
वस्तु प्रागैतिहासिक कालकी होनेसे इतिहासकी वास्तजान करने के लिए अत्यन्त परिश्रम करनेकी अावश्यकता
विकताका निर्णय कगने में सर्वथा अनुपयोगी है जबकि नहीं । दोनों महाकाव्योंकी इतिहासकी दृष्टि से भी महान
आचार्यश्रीकी ये कृतियां गुजरात के मध्यकालीन उपयोगिता है। क्योंकि संस्कृत महाकाव्यमें तो गुज
इतिहासके खोज के लिये अनुपम माधनरूप हैं व्याकरण रातके गजनैतिक इतिहास में प्रख्यात चालुक्य वंशका
की दृष्टि में भी दोनों काव्य उसमे अधिक श्रेष्ठ हैं। वर्णन तथा मिद्धराज जयसिंहके दिगंबजयका विवेचन
क्योंकि पाणिनीम जिम क्रमस शब्दमिद्धि आई है उस किया गया है। और प्राकृत महाकाव्यमं सालही वंशक. ऐतिहासिक वर्णनके साथ-साथ महाराज कुमारपालका
क्रमस भट्टिकाव्यमें उनका प्रयोग उदाहरण पूर्वक नहीं
ममझाया गया है। जबकि अधिकृत काव्योम मिद्धहमके चरित्र भी विस्तार पूर्वक लिखा गया है । इमीलिए.
क्रमको नहीं छोड़ा गया है। इसका अपरनाम “कुमारपाल-चरित्र' भी है। यह काव्य अतिविचित्र और काव्य-चमत्कृतिका सुन्दर दानों काव्यांका परिमाण क्रममे २८२८ और उदाहरण है। अतः गुजगतके प्रामाणिक इतिहास.२५०० श्लोक संग्च्या प्रमाण है। संस्कृत काव्य पर