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________________ २९८ अनेकान्त [ फाल ण, वीर-निर्वाण सं० २०६५ मन्दिर, तालाब, धर्मशाला, पुस्तकालयभण्डार और एक मन्यामीका रूप प्रगटित किया और राजाको अपनी उपाश्रय आदिका निर्माण कराया था। कहा जाता है कि विशिष्ट शक्तिका प्रामाणिक मूर्तिमंत विश्वास कराया । अपने जीवन में कुमारपालका दैनिक कार्यक्रम भी आदर्श ऐसा कहा जाता है कि एक-दो युद्धके प्रसंग उपस्थित और नियमित था । मुनिदर्शन, सामायिक श्रादि धर्म होने पर आचार्यश्री अपने विद्या-बलसे मानव-संहारका कार्य भी प्रतिदिन किया करता था। इस सम्बन्धी विस्तृत टालनेके उद्देश्यसे शत्रु गजाको कुमारपालकी शरण और प्रामाणिक विवरण मोमप्रभाचार्य विरचित 'कुमार. में ले आये थे। पालप्रतिबोध' नामक ग्रन्यमे जाना जासकता है । विस्तार एक बार काशीसे आये हुए विश्वेश्वर नामक कविभयसे अधिक लिखनेमें असमर्थता है । यह सब प्रताप ने कुमारपालके समक्ष ही राज-सभामं हेमचन्द्रश्रीके प्राचार्य हेमचन्द्रका ही है। इस प्रकार अनक दृष्टियों लिए व्यङ्गात्मक ध्वनिसे कहा किसे आचार्य हेमचन्द्र महान प्रभावक, अद्वितीय मेधावी पातु वा हेमगोपालः कम्बलं दंडमुद्वहन्" और असाधारण महापुरुष हैं । इनका माहित्यिक-जीवन अर्थात्--- कम्बल और दंडा रखने वाला हेमगोपाल जितना श्रेष्ठ और उज्ज्वल है उतना ही कर्तव्य-मय ( गाय चराने वालेको वेषभूशा वाला अतः ग्वालिया ) जीवन भी प्रशस्त और आदर्श है। हमारी रक्षा करे । इस पर प्राचार्यश्रीने अविलम्ब उत्तर कुमारपालके संस्मरण दिया कि कुछ ब्राह्मण पंडित कुमारपालको हिन्दू-धर्म में पुनः “पड दर्शन पशुग्रामं चारयन् जैनगोचरं ।” दीक्षित करने के लिये अनेक प्रयत्न करने लगे । इन्द्र- अर्थात् - जैनधर्मरूपी बाड़े में छः दर्शनरूपी पशु जाल द्वारा कुमारपालको दिखाने लगे कि देखो ये तुम्हा. समूहको घेरकर रखने वाला ( ऐमा गोपाल-स्वरूप हेम.. रेमाता-पिता और अन्य पूर्वज तुम्हारे कुलधर्मको छोड़ने चन्द्र रक्षा करे ) । इस पर मारी मभा प्रसन्न हो उठी और से दुःखी होरहे हैं और तुम्हें श्राप देरहे हैं । इसपर वह कवि लज्जित होगया । आचार्य हेमचन्द्र की प्रत्युभाचार्य हेमचन्द्रने पुनः योग्य-विद्याके बलसे कुमारपाल त्पन्नमतिसम्पन्न प्रतिभाका अनेक प्रकरणोंमें से यह एक को बतलाया कि देखो ये तुम्हारे पूर्वज तुम्हारे द्वारा छोटासा किन्तु मार्मिक प्रमाण है । यह उनकी दक्षता, जैन-धर्म ग्रहण करनेसे ही सखी और सन्तुष्ट हैं। और स्फूर्तिशीलता और हाज़िर-जबाबीका एक सुन्दर उदा तुम्हें कल्याणमय भावनाके साथ शुभाशीर्वाद दे रहे हैं। हरण है। इस प्रकार अनेक और हर प्रकारकी प्रवृत्तियोंसे विधर्मियों प्राचार्य हेमचन्द्र के प्रति परमाहंत कुमारपालकी द्वारा च्युत करनेका प्रबल प्रयत्न किया जाने पर भी असाधारण श्रद्धा, अनन्य भक्ति, अद्वितीय सम्मान कुमारपालको जैन-धर्म में दृढ़ बनाये रम्बना केवल हमार और अलौकिक अनुराग था । यदि लौकिक अलङ्कारिक चरित्र-नायककी विशिष्ट प्रतिभाका ही फल था। ऐसी भाषामें कहे तो इन दोनोंका सम्बन्ध "दो शरीर और सामर्थ्य अन्य किसी में होना असंभव नहीं तो करिन एक जीववत्" था। इन दोनोंके अनेक उपदेशप्रद अवश्य है । प्राचार्य हेमच द्र जब कुमारपाल के साथ संस्मरण है किन्तु स्थलसंकोचसे अधिक लिम्वनेमें अससोमनाथके मन्दिरमें गये तो वहां महादेवजीके लिंगमेंसे मर्थता है। अधिक जाननेकी इच्छा रखनेवाले पाठक
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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