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वर्ष २, किरण ५ ]
प्राचार्य हेमचन्द्र
कुमारपालसे भेंट और उसकी कृतज्ञता गङ्गानदी, दक्षिणमें विंध्याचल, और पश्चिममें समुद्र-. - सिंद्धराज जयसिंहकी मृत्यु के पश्चात् श्राचायश्री पर्यंत बतलाई है। गुजरात के विभिन्न प्रदेशोंको अपने पादपङ्कजों द्वारा परमाहत कुमारपालके धर्म-कार्य • पवित्र करने लगे। एक दिन उनकी और भावी गुजरात
नरवीर कुमारपालने अपने सम्पूर्ण राज्यमें निम्ननरेश कुमारपालकी भंट होगई । सामुद्रिक श्रेष्ठ लक्षणी
लिखित तीन पाशाओंका पूरी तरह से पालन करानके के आधारसे आचार्यश्रीने उसका यथोचित आदर लिये प्रभावशाली हुक्म जारी कर दिया था जिसका कि सत्कार किया और फरमाया कि "आजसे सात वर्ष पश्चात्
अक्षरशः सम्पूर्ण राज्य में पालन किया गयाः-. अमुक दिन और अमुक घड़ी में तुम्हारा राज्याभिषक (१) प्राणी मात्रका वध बन्द किया जावे और सभी जीवोंहोगा।"
को अभयदान दिया जाय। (२) मानव-जीवनको नष्ट करने अन्तमं यह बात सत्य प्रमाणित हुई और संवत् वाले दुर्व्यसन-बूत, मांस, मद्य, शिकार भादि प्रकार्य ११९९ में ५० वर्षकी आयु कुमारपाल पाटणकी सर्वथा नहीं किये जावें । (३) दीर्घतपस्वी भगवान् महाराज्यगद्दीका अधिकारी हा । जनताने और राज्याधि वीर स्वामीकी पवित्र श्राशाओंका पालन और सत्यकारियोन परम उल्लास के साथ उसका राज्याभिषेक धर्मका प्रचार किया जावे। किया; एव अपना शासक रवीकार किया । राजा कुमार.
परमाईतकुमार पलने 'अमारि पडह' अर्थात् पूर्ण पालने राज्याभिषेक होतही तत्काल प्राचार्यश्रीको कृत
अभयदानकी जयघोपण। अपने सम्पूर्ण और विस्तृत
गज्य में करवादी थी। राजकुल देवी कटवेश्वरीको जी शतापूर्वक स्मरण किया। प्राचार्य हेमचन्द भी राजाको
हिंसामय बलिदान दिया जाता था, वह तक बन्द करवा विनांतको स्वीकारकर पाटणम पधारे । राजाने अत्यन्त
दिया गया था। इस प्रकार प्राचार्य हेमचन्द्र ने इस कलिआदर सत्कार किया और अपना राज्य, वैभव, सम्पत्ति मब कुछ इस कृतज्ञ और गुरुभच राजाने भाचार्यश्री-
युग तकमें भी जन-धर्मका पुनः महान् प्रभाव स्थापित कर पुन
के जैन-धर्मकी असाधारण संवा की है। विस्तृत राज्यकी के चरणों में समर्पण कर दी।
शासन-प्रणाली पर जैन-धर्मका प्रेममय नियंत्रण स्थापित राजा पूरी तरहसे हेमचन्दसूरिको अपना गुरु मानने
करके हमारे चरित्र-नायक निश्चयही 'जैन-शासन प्रणेता' लगा और विक्रम संवत् १२१६ की मार्गशीर्ष शुक्ला
की पंक्ति में जा विराजे हैं। द्वितीयाको प्रगट रूपसे सम्यक्त्वकी और श्रावक व्रतकी
महागज कुमारपालने अपनी स्मृति के लिए 'कुमार दीक्षा लेली। राजाके दृढव्रती श्रावक बन जानेपर विहार' नामक अत्युच्चकोटिका अतिभव्य जैनन्दिर प्राचार्यश्रीने ‘परमाहत' नामक सुन्दर और विशिष्ट- बनवाया था। जोकि ७२ जिनालयों में परिवेष्टित था। भावद्योतक पदवीसे उसे विभूषित किया । धर्म प्रेमकं तारकाजी पर्वत पर भी अजितनाथजीका महान सुन्दर प्रस्तावसे परमाहंत कुमारपाल के राज्यकी सीमा भी बहुत मन्दिर बनवाया था । कुमारपालका यह प्रांतरिक विस्तृित होगई थी। प्राचार्य हेमचन्दने 'महावीर-चरित्र' विश्वास था कि मैं अजितनाथजीकी कपासे ही प्रत्येक में कुमारपालके राज्यकी सीमा उत्तर में तुर्किस्तान, पूर्वमें कार्यमें विजयी होता हूँ। धर्मात्मा कुमारपालने अनेक