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वर्ष २ किरण १]
अनेकान्तवाद प्रत्येक वस्तुमें, उसके अतिरिक्त अन्य वस्तुओं- इस प्रकार सप्तभंगीवाद यह स्पष्ट करता है की असत्ता मानना अनिवार्य है।
कि प्रत्येक धर्म वस्तुमें किस अपेक्षासे रहता है
और किस अपेक्षासे नहीं रहता। (३) स्यादस्ति नास्ति घट:- क्रमशः स्वरूप
और पररूपकी अपेक्षासे वस्तुका विधान किया जायतो पूर्वोक्त दोनों वाक्योंका जो निष्कर्ष निकलता अनेकान्तवादकी तात्विक उपयोगिता-वस्तुहै वहीं तीसरा अंग है।
स्वरूपका वास्तविक परिचय देना है। किन्तु इस(४) स्यादवक्तव्यो घटः- वस्तुमें अनन्त धर्म
की व्यावहारिक उपयोगिता भी कुछ कम नहीं है । हैं। भाषा द्वारा उन सबका एक साथ विधान यदि हम अनेकान्तवादके मर्मको समझलें और नहीं किया जा सकता । इस अपेक्षा वस्तुका
तमा जीवनमें उसका प्रयोग करें तो यह विवेकशून्य स्वरूप कहा नहीं जा सकता है अर्थात् घट
सम्प्रदायिकता, जिसकी बदौलत धर्म बदनाम हो अवक्तव्य है।
रहा है, धर्मको सर्व साधारण लोग क्षयका
कीटाणु समझने लगे हैं, आये दिन सिर फुटौव्वल इसी प्रकार स्यादम्ति अवक्तव्यो घटः, स्यान्ना- होती है, और जिसने धर्मके असली उज्ज्वल स्ति अवक्तव्योघटः, और स्यादस्ति-नास्ति-अवक्तव्यो रूपको तिरोहित कर दिया है, शीघ्र ही हट घटः, यह तीन भंग पूर्वोक्त भंगोंके संयोगसे सकती है। इसके लिए दूसरेके दृष्टिबिन्दु को बनते हैं। अत: पूर्वोक्त दिशासे इन्हें भी घटित समझने और सहन करनेकी आवश्यकता है। कर लेना चाहिए।
विश्व शान्तिके लिए जैसे 'जीओ और दूसरोंको ऊपरसे यह सिद्धान्त एक पहेली-सा जान जान दो' इस सिद्धान्त
जीने दो' इस सिद्धान्तके अनुसरणकी आवश्यपड़ता है; किन्तु गंभीरतापूर्वक मनन करनेसे इस कता है उसी प्रकार दार्शनिक जगत्की शान्ति में रहे हुए शुद्ध सत्यकी प्रतीति होने लगती है। के लिए 'मैं सही और दूसरे भी सही' का सुप्रसिद्ध विद्वान मेटोने एक जगह लिखा है- अनुसरण करना होगा। अनेकान्तकी यही
खूबी है कि वह हमें यह बतलाता है कि हम When we speak of not being तभी तक सही रास्तेपर हैं जब तक दूसरोंको we speak, I suppose, not of some. ग़लत रास्तेपर नहीं कहते। दूसरोंको जब हम thing opposed to being but only भ्रान्त या मिथ्या कहते हैं तो हम स्वयमेव मिथ्या different.
हो जाते हैं, क्योंकि ऐसा करनेमें अन्य दृष्टिकोण
...... का निषेध हो जाता है, जो किसी अपेक्षासे वस्तु अर्थात् जब हम असत्ताके विषपड़े कुछ माया जाता है। अतएव यदि हम सत्यका कहते हैं तो मैं मानता हूँ, हम समाके विरुद्ध , अन्वेषण करना चाहें तो हमारा कर्तव्य होगा कुछ नहीं कहते, सिर्फ भिन्नके अर्थम कहते हैं। कि हम दूसरेके विचारको समझे, उसकी अपेक्षा