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________________ रेतिहासिक महापुरमा Marria AL T प्राचार्य हेमचन्द्र ले...श्रीतिनलाल संघवी न्यायतीर्थ. विशारद] (क्रमागत ) व्याकरणका सम्मान अर्थात्-. भई ! जहाँ तक श्रीसिद्धिहेम-व्याकरणकहा जाता है कि जब आचार्यश्रीने यह व्याक की अर्थमधुरमय उक्तियां सुनने में आती हैं; वहां तक रण समाप्त कर लिया तोगजा अत्यन्त प्रसन्न पाणिनि ( व्याकरण ) के प्रलापको बन्द रख । कातन्त्र ताके साथ ममारोह पूर्वक उम ग्रन्थगजको अपने खुदकीम (शिवशर्मा कृत ) व्याकरणरूपी कंथाको व्यर्थ समझ। वारीवाले हाथी पर रखवाकर दरबार में लाया। हाथी पर शाकटायन व्याकरण के कटुवचनोको मत बोल । क्षद्र दोनों ओर दो स्त्रियं श्वेत चामर उड़ाती थीं और ग्रन्थ चांद्र ( चन्द्रगोत्री बौद्धकृत ) व्याकरण तो किस काम पर श्वेत-छत्र द्वारा छाया कर रखी थी । राज्य-मभामं की ? इसी प्रकार कंठाभरण आदि अन्य व्याकरणों के विद्वानों द्वारा उमका पाठ कराया गया और ग्रन्थकी द्वारा अपने आपको क्यों बठर ( कलुषित ) करता है ? विधिवत् पूजा करके प्रतिष्ठा पूर्वक राजकीय सरस्वती अर्थात्, केवल सरस शब्दमय, लालित्यपदपूर्ण, काव्यभण्डारमें उसकी स्थापना की गई। उस समय किसी तुल्यमधुर मिद्धहमव्याकरण ही सर्वश्रेष्ठ और सुन्दर है। कविने अपने उद्गार भी इस प्रकार प्रकट किये :--- अब पाठक स्वयं कल्पना कर सकते हैं कि कलिकाल भातः संवृणु पाणिनि प्रलपितं, कातन्त्रकथा वृथा। मवंश आचार्य हमनन्द्रका जैनसमाजके प्रतिभाशाली मा द्वाषीः कटुशाकटायनवचः, तद्रण चान्द्रेण किम्॥ प्राचयों; समर्थ विद्वानों, सुयोग्य लेखकों और सुपुज्य किं कंठाभरणादिभिर्बठरयस्यात्मानम यैरपि । प्रभावक महात्माओंमें कितना ऊँचा, कितना गौरवमय श्रयन्ते यदि तावदर्थमधुराः, श्रीसिद्धहेमोक्तयः ॥ और कितना महत्त्वपूर्ण स्थान है ! यदि हम ऐसे
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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