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________________ व अतीत स्मृति IMA FEAD - - O परिवर्तन लेखकरूप जैन 'भगवत् । [ भगवत्स्व गानोदया थी अतीव सुन्दर ! और फिर प्रेमके है !...... लिए क्या सुन्दर, क्या असुंदर ? वह तो उसदिन जैसेही राजकुमार-बाहुने अपने भव्यअन्धा होता है न ?-विवेक-हीन ! तिस पर था बज्र- भवनमें प्रवेश किया, कि-एक सम वयस्क युवक पर बाहुको स्वभाव-गत उचित और हार्दिक-प्रेम ! होना उनकी दृष्टि पड़ी ! प्रमाभिवादन हुआ ! एक दूसरेको भी चाहिए, वह इसलिए कि पुरुषके लिए सौन्दर्य-वती, देख, दोनों प्रसन्न हुए ! पतिपद-पूजक नारीके अतिरिक्त इस अथिर-विश्व में और यह थे-उदय सुन्दर ! कोई सुख ही नहीं। विश्वकी कठोरताका निराकरण हस्तिनागपुर-नरेश महाराज दन्तवातनके सुपुत्र ! नारी ही कर सकती है । साथ ही-मनोदया और यज्र- राजकुमारी मनोदया के प्रेमपूर्ण सहोदर ! या कहना बाहुका दाम्पत्तिक चयन, मानवीय त्रुटियों द्वारा न होकर चाहिए-वीर-बज्रयाहुके स्नेही ---माले साहिब ।। प्राकृतिक या जन्म-जात संस्कारों द्वारा हुआ हो, ऐसा खुले मन और खुले तरीके पर बातें चलीं। सालेप्रतिभासित होता था ! दोनों ही तारुण्यके उमङ्ग भरं बहनोई का नाता, फिर लगावट और परदेका काम ही उपवनमें विहार कर रहे थे ! मनोदया सौन्दर्य-समृद्धि क्या ?-बातें करते कितनी देर हुई, इसका दोनों में से की अधीश्वरी थी तो बज्रबाहु ये युवक-तेज और मन्मथ- किमीको पता नहीं ! इसके बाद कामकी बातोंका नम्बर मैन्यके सरस अधिनायक ! वह इन्द्रीवर सुरभि थी, तो पाया।वह रस-लोलुप-भूमर ! वह साध्य थी तो वह माधक! ..तो महाराजने स्वीकारता देदी ?'-कुछ कष्ट-सा किन्तु इस अन्तरकी तहमें विरसता न थी, एक उमंग अनुभव करते हुए यज्रबाहुने पूछा ! थी, एक आकर्षण था, और थी एक अभिन्नता-सी! हा!- सहर्ष...! अस्वीकारताकी वजह भी तो जो प्रेम सम्बन्धमें, वांछनीय-वस्तुके रूपमें, ग्राह्य होती होती-कुछ!'-.साले-साहिबने प्रावश्यकतासे अधिक
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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