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अनेकान्त
[माघ, वीर-निर्वाण सं० २४६५
महोदयसे भी इसी प्रकार अन्य कवियोंकी भी काव्य ही कार्य नहीं चलेगा । ग्रन्थतो बहुतसे प्रकाशित हैं, फिर समीक्षा प्रगट करनेका अनुरोध है ।
भी जैन साहित्यके विषय में जैनेतर विद्वान इतने श्वेताम्बर जैन समाजका केन्द्रस्थान गुजरात और अधिक अंधकार में क्यों हैं ? इसके कारण पर जब विचार राजपूताना है । वहां हिन्दी-भाषाका प्रचार पूर्व कालसे किया जाता है तो यह बात स्पष्ट जान पड़ती हैं कि हमने ही नहीं रहा । अतः श्वेताम्बर-समाजमें हिन्दी भाषाके ग्रन्थ अपने ग्रन्थोंको प्रसिद्ध प्रसिद्ध अजैन पुस्तकालयों एवं अपेक्षा कृत कम है । दिगम्बर साहित्यमें हिन्दीग्रन्थों की जैनेतर विद्वानोंके हाथों तक पहुंचानेकी ओर सर्वथा संख्या बहुत अधिक है । इधर ३०० वर्षों में रचित दुर्भिक्ष रक्खा है । अतः अब मेरे नम्र अभिशयानुसार अधिकांश ग्रन्थ हिन्दी में ही हैं । अतः हिन्दी समाजके हमें अपने प्रत्येक विशिष्ट ग्रन्थोंको जैनेतरपत्र सम्पादकों विद्वानोंका यह सर्व प्रथम एवं परमावश्यक कर्तव्य है के पास समालोचनार्थ तथा प्रसिद्ध प्रसिद्ध अजैन पुस्तकि वे अपने प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोंको पूर्ण खोजकर कालयों एवं विद्वानोंको भेंट स्वरूप भेजना चाहिये। साथ उनके इतिहास नवनीतको शीघ्रातिशीघ्र जनताके ही हिन्दी सामयिक पत्रों में हिन्दी एवं अन्य सभी प्रकार समक्ष रक्खें।
के जैन साहित्यके सम्बन्धमें लेख बहुत अधिक संख्या में ___एक बात मैं कहदेना और भी आवश्यक समझता प्रकाशित करने चाहिये तभी हमारा साहित्य विश्व में है और वह यह है कि केवल ग्रन्थ प्रकाशित कर देनेसे अपना उपयुक्त स्थान पासकेगा।
'जिसका मन सत्यमें निमग्न है वह पुरुष तपस्वीसे भी महान् और दानीसे भी श्रेष्ठ है।' तीर सीधा होता है और तम्बूरे में कुछ झुकाव रहता है । इसलिये आदमियोंको सूरतसे नहीं, बल्कि उनके कामोंसे पहिचानो।' 'अहिंसा रुब धर्मों में श्रेष्ठ धर्म है । सच्चाई का दर्जा उसके बाद है।' 'यदि तुम नेकीको चाहते हो तो कामनासे दूर रहो क्योंकि कामना एक जाल और निराशा मात्र है।' 'कामनासे मुक्त होने के सिवाय पवित्रता और कुछ नहीं है और यह मुक्ति पूर्ण सत्यकी इच्छा करनेसे ही मिलती है। 'मनुष्यकी समस्त कामनाएँ तुरन्तही पूर्ण होजाया करें यदि वह अपने मनके क्रोधको दूर करदे ।' 'हृदयसे निकली हुई मधुरवाणी और ममता मयी स्निग्ध दृष्टि के अन्दरही धर्मका निवासस्थान है ।' 'सब प्रकारकी ईर्ष्यासे रहित स्वभावके समान दूसरी और कोई बड़ी नियामत नहीं है।' 'बुराईसे बुराई पैदा होती है, इसलिये आगसे भी बढ़कर बुराईसे डरना चाहिये ।'
-तिरुवल्लुवर
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