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________________ वर्ष २ किरण ४] हिन्दी-जैन-साहित्य और हमारा कर्तव्य २५१ ग्रन्थोंको भी जैनधर्म तत्व निरूपण के ( बिना देग्वेही) लगभग १०० के जैन-कवियों की नामावलि थी । यह कैसे ठहरा दिये ? इसे वही जाने । सूची सं0- में प्रकाशित हुई थी और अब कई मिश्चयन्धु विनोदके ४ भागों में यद्यपि बहुतसे जैन वर्षोंसे नहीं मिलती। कवियोंका नाम निर्देश है पर उनमें भूलभान्तियोंकी इसके पश्चात् श्रीयुत पं० नाथूरामजी प्रेमीने ठोस भरमार है । साहित्य दृष्टि से जिन कवियों व कृतियोंका कार्य किया। उन्होंने जनेतर विद्वानोंका इस ओर परिचय दिया गया है उसमें जैन कवि शायद ही हों। ध्यान आकर्षित करनेके लिए. “हिन्दी जैन साहित्यका हिन्दी साहित्य के विवेचनात्मक इतिहास में भी २-४ इतिहास" नामक एक विशिष्ट निबंध लिखकर उसे जैन कवियोंका नाम मात्र निर्देश है। इसी प्रकार हिन्दी- सप्तम हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन जबलपुर में पढ़ा था और माहित्य के ऐतिहासिक ग्रन्थोंको पढ़कर यह महज धारणा र स्वतंत्र रूपसे प्रकाशित भी किया था। पर कई वर्षोंसे होती है कि साहित्य कोटि में आनेवाली हिन्दी भाषाकी वह भा अ र वह भी अप्राप्य है। प्रेमीजीने इसके अतिरिक्त नैनजैन रचना प्रायः नहीं है अर्थात हिन्दी-साहित्य में जैन- हितैषी में जो कि उस समय उनके सम्पादकत्व में प्रकाकवियोंका कोई विशेष स्थान नहीं है। पर हम जब शित होरहा था, “दिगम्बर जैनग्रन्थ और उनके कर्ता" अपने जैन भण्डारीको देखते हैं तो यह धारणा निता.त नामका एक सूचा भा प्रक नामकी एक सूची भी प्रकाशित की थी और उसे अज्ञान जन्य एवं भम मूलक प्रतीत होती है । सैकड़ों जैन स्वतन्त्र रूपस भी निकलवाया था; पर अब कई वर्षों ग्रन्थ हिन्दी गद्य तथा पद्यमें उपलब्ध होते हैं-खासकर । से वह भी नहीं मिलती। प्रेमीजी केवल इतना कार्य गद्य हिन्दीका प्राचीन साहित्य तो जैन रचनाके कर के ही नहीं रह गये, किन्तु उन्होंने प्रसिद्ध-प्रसिद्ध रूपमें सर्वाधिक प्राप्त है। हिन्दी साहित्यके इतिहास हिन हिन्दी जैन कवियों के कई पदादि के संग्रह भी प्रकाशित ग्रन्थों में प्राचीन हिन्दी गद्य साहित्यका प्रायःअभाव मा ही किये हैं पर उनमसे 'बनारसी बिलास' जैसे उत्कृष्ट ग्रन्थ नज़र आता है और यह सब हमारी हिन्दी जैन साहित्य- अब नहीं मिलते । यह सब जैन समाजका दुर्भाग्य है जो की ओरसे उपेक्षा धारण करनेवाली परिणति है। ऐसे में उपयोगी ग्रन्थ बोंसे नहीं मिलने परभी उनके अब मैं यह भी बतला देना आवश्यक समझता हूँ कि प्रकाशनकी ओर कोई ध्यान नहीं है। इधर कई वर्षोंसे जैन विद्वानोंकी ओरसे हिन्दी जैन साहित्यके परिचय पुरातन हिन्दी साहित्य के परिचय और प्रकाशनकी विषयमें अब तक क्या क्या कार्य किया गया है ? इसका प्रवृति बहुत मन्द होगई है, परन्तु वोमे सोए हुए सिंहोंमें भी तनिक सिंहावलोकन कर लिया जाय, जिससे भविष्य अब फिर कुछ जागृतिकी लहर नज़र आने लगी है। हालही में कार्यकी दिशाका ठीक परिज्ञान हो सके और अच्छा में मृलचन्दजी वत्सलका हिन्दी-जैन-कवियोंका इतिहास मुगम मार्ग स्थिर किया जासके। देखने में आया है। उसमें केवल दोही कवियांका ___ सबसे पहले मेरी दृष्टि में बाबू ज्ञानचन्द्रजी जैनी- परिचय है । आशा है वे भविष्य में शीघ्रही अन्य कवियों लाहौरका प्रयत्न है, उन्होंने अच्छी शोध खोज करके का इतिहासभी प्रगट करेंगे। हिन्दी जैन ग्रन्थोंकी एक सूची प्रकाशित की थी, दूसरा एक छोटासा ट्रक्ट "भूधर" कविके सम्बन्ध जिसमें तीनसौ से भी अधिक हिन्दी जैन ग्रन्थों और में गत वर्ष अवलोकनमें पाया था। उसके लेखक
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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