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शिकारी
बट-वृक्षकी घनी डालियों में सूर्य तापमे सुरक्षित उसके मम्मुख दो समस्याएँ थीं । बच्चेका प्रेम और
'चिड़िया और उसका नन्हा-सा बच्चा बैठे विश्राम जीवनका लोभ । लेरहे थे। गर्मी पड़ रही थी। और वे दोनों दिन-भरके लेकिन निर्णय वह आम्मान में जाकर करेंगी। वह थके-मांदे थे। चिड़िया अधिक थकी नहीं थी। चाहती तो उड़ चली, इतनी ऊँची कि जहाँ मानवबल की पहुँच उड़कर सीधी अपने घोंसले तक पहुँच जाती और अपने नहीं है। अन्य बच्चों के बीच आराम करती; लेकिन वह बच्चेकी उधर ! व्याकुलता न देख सकी । बच्चा बेहद थक गया था और शिकारी की दुनाली बन्दूक चिड़ियाकी और तन अब एक पग भी और उड़ना उसके लिए दूभर हो गया गई। शिकारीने निशाना लगानेका प्रयत्न किया; था । चिड़िया-माँ को उसे छोड़ कर आगे बढ़ जाना लेकिन चिड़िया तेज़ीमे उड़ रही थी। सम्भव नहीं था।
शिकारी निशाना न लगा सका। वह प्रतीक्षा करने ठंडी वायुमें दोनों आँख मूंदे बैठे थे । थोड़ी देर लगा कि ज्यो ही चिड़िया पर थामे कि वह घोड़ा दबादे। में चिड़ियाने कहा- 'बेटा, अब चलें ?'
सहसा सुनाथोड़ा और ठहरो, माँ। अभी चलते हैं।' ...अन्य
'श्रो पगले, व्यर्थ है यह सारा परिश्रम । निश्चित मनस्क भावसे बच्चेने कहा।
बैठ। चिड़िया में माँ की ममता है। वह बच्चेके समीप दोनों चुप हो गये।
श्रायगी, अभी आयगी।' कुच देर पश्चात् चिड़िया ने फिर कहा, 'क्यों बेटा, शिकारी ठहर गया। अब चले ?'
-माँ की ममता! इतनी कि चिड़िया अपने प्राणों 'हाँ, मां, चलो।'
की भी चिन्तान करेगी? और उस निर्जीव बच्चे के लिए -~और ज्यों ही दोनों उड़ने को हुए कि- अपने प्राणोंको भी संकट में डाल देगी ? इतना त्याग ! ठीय-ठाय
इतना बलिदान !! और बच्चा पृथ्वी पर आ गिरा ! चिड़िया ने देखा। शिकारीका मस्तिष्क चक्कर खा उठा । बन्दूक तनी क्षण-भरको वह शान-शून्य हुई कि फिर संभल गई। थी, लेकिन निश्चेष्ट शरीरको लेकर वह अनुभव कर