________________
कथा कहानी
ले-अयोध्याप्रसाद गोयलीय
[इस स्तम्भमें ऐसी छोटी छोटी सुरचि और भाव पूर्ण पौराणिक, ऐतिहासिक तथा मौलिक कथा-कहानियां देने की अभिलाषा है जो व्याख्यानों, शास्त्र सभाओं और लेखोंमें उदाहरण रूपसे प्रस्तुत की जा सके। इस ढंगकी कहानियों के लिखने का अभ्यास न होते हुए भी कुछ लिखनेका प्रयास किया है, जिससे विद्वान लेखक मनोभाव समझ कर इस ढंग की कथा-कहनियां लिखकर भिजवा सकें। ]
(१) जब द्रोपदी सहित पांचो पाण्डव वनों में तेरा बेटा जीता रहे मैं बहुत थक गई हूँ मुझसे यह देश-निर्वासन के दिन काट रहे थे असह्य आपत्तियां अब उठाई नहीं जाती।' घुड़मबार ऐंठकर बोला:झेलते हुए भी परस्पर में प्रेम पूर्वक सन्तोषमय जीवन "हम क्या तेरे बाबा के नौकर हैं, जो तेरा सामान लादते व्यतीत कर रहे थे तब एक बार श्रीकृष्ण और उनकी फिर" और यह कहकर वह घोड़ेको ले आगे बढ़ गया। पत्नी सत्यभामा उनसे मिलने गये। विदा होते समय बुढ़िया विचारी धीरे धीरे चलने लगी। आगे बढ़कर एकान्त पाकर सत्यभामाने द्रोपदीसे पूछाः-"बहन ! घुड़सवारको ध्यान आया कि, गठरी छोड़कर बड़ी गलती पांचों पाण्डव तुम्हें प्रेम और आदरकी दृष्टिसे देखते की। गठरी उस बुढ़ियासे लेकर प्याउवालेको न देकर हैं, तुम्हारी तनिकसी भी बात की अवहेलना करनेकी यदि मैं आगे चलता होता, तो कौन क्या कर सकता उनमें सामर्थ्य नहीं है, वह कौनसा मन्त्र है जिसके था ? यह ध्यान आतेही वह घोड़ा दौड़ाकर फिर बुढ़िया प्रभावसे ये सब तुम्हारे वशीभूत हैं ।" द्रोपदीने सहज के पास आया और बड़े मधुर वचनोंमें बोलाः -- “ला स्वभाव उत्तर दिया-बहन ! पतिव्रता स्त्रीको तो बुढ़िया माई, तेरी गठरी ले चल, मेरा इसमें क्या ऐसी बात सोचनीभी नहीं चाहिए। पति और कुटुम्बी- बिगड़ता है, प्याऊ पर देता जाऊगा।" बुढ़िया बोलीजन सब मधुर वचन तथा सेवासे प्रसन्न होते हैं.- "नहीं बेटा वह बात तो गई, जो तेरे दिलमें कह गया मन्त्रादिसे वशीभत करने के प्रयत्नमें तो वे और भी परे है वही मेरे कानमें कह गया है । जा अपना रास्ता नाप, खिचते हैं।" यह सुनकर सत्यभामा मनही मन अत्यन्त मैं तो धीरे-धीरे पहुंच ही जाऊगी ।" घुड़सवार लज्जित हुई।
मनोरथ पूरा न होता देख अपना सा मुह लेकर चलता (२) एक मार्ग चलती हुई बुढ़िया जब काफी थक बना । चुकी तो राह चलते हुए एक घुड़सवारसे दीनतापूर्वक (३) हज़रत मुहम्मद, जबतक अरबवालोंने उन्हें बोली:-'भैया, मेरी यह गठरी अपने घोड़े पर रखले नबी स्वीकृत नही किया था तबकी बात है, घरसे और जो उस चौराहे पर प्याऊ मिले, वहां दे देना, रोज़ाना नमाज़ पढ़ने मस्जिद में तशरीफ लेजाते तो,